‘सर्जनपीठ’ का राष्ट्रीय आयोजन

हम तो इंसान को दुनिया का ख़ुदा कहते हैं– फ़िराक़ गोरखपुरी


वैचारिक-बौद्धिक मंच ‘सर्जनपीठ’, प्रयागराज ने शाइरे आज़म फ़िराक़ गोरखपुरी की जन्मतिथि के अवसर पर एक आन्तर्जालिक राष्ट्रीय बौद्धिक आयोजन किया।

प्रो० सग़ीर अफ़्राहिम (निवर्तमान विभागाध्यक्ष– उर्दू, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय)

उर्दू-विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के निवर्तमान अध्यक्ष प्रो० सग़ीर अफ़्राहिम ने मुख्य अतिथि के रूप में कहा, “फ़िराक़-जैसे संवेदनशील शाइर की रुबाइयों में अपनी कौमी और वतनी जज़्बे की झंकार साफ़ सुनायी देती है। उनकी रचनाओं में प्राकृतिक चित्रण नयेपन के साथ है। उनमें जीवन-मरण, ज़िन्दगी की सच्चाई तथा जीवनमूल्य का बोध प्रतिबिम्बित होता है। उनकी काव्यरचनाओं में यमक, रूपक आदिक अलंकारों का मनोरम रूप प्राप्त होता है।”

प्रो० राहत अबरार (निदेशक– उर्दू एकेडेमी, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय)

उर्दू एकेडेमी, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में निदेशक प्रो० राहत अबरार ने अध्यक्षता करते हुए कहा, “एक अज़ीम शाइर की पहचान होती है कि उसकी शाइरी आनेवाले ज़माने को भी गुदगुदाती रहे। फ़िराक़ साहिब आज हमारे बीच नहीं हैं; किन्तु उनकी शाइरी सभी भारतवासियों के दिल में बसी हुई है।”

असरार गांधी (साहित्यकार-विचारक)

साहित्यकार और विचारक असरार गांधी (प्रयागराज) ने बताया, “फ़िराक़ साहिब की शाइरी में अद्भुत सौन्दर्यबोध की झलक मिलती है। यही कारण है कि उनकी शाइरी में विविध प्रकार के हिन्दुस्तानी रंग दिखते हैं। उनकी कृतियाँ संस्कृत-श्लोक की भाव-प्रवणता से प्रभावित दिखती हैं। यही कारण है कि उनकी रचना की यही विविधता उन्हें दूसरों से बड़ा बना देती है।”

आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय

परिसंवाद-आयोजक, भाषाविद् और समीक्षक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने कहा, “फ़िराक़ साहिब परम्परागत भावबोध के पक्षधर थे, तथापि अपने शब्दभण्डार के कपाटों को अनावृत करके, उसे नयी भाषा और विषयों से और समृद्ध किया है। सामाजिक वेदना व्यक्तिगत अनुभूति के रूप में उनकी शाइरी में रची-बसी दिखती है। दैनिक जीवन के कटु सत्य और आसन्न कल के प्रति आशा को भारतीय संस्कृति और लोकभाषा से समन्वित करते हुए, उन्होंने अपनी शाइरी को लोकजीवन में परिव्याप्त किया है।”

प्रो० अहमद अली फ़ातमी (पूर्व-विभागाध्यक्ष– उर्दू, इलाहाबाद विश्वविद्यालय)

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पूर्व-उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो० अली अहमद फ़ातमी ने कहा, “बीसवीं सदी के शुरू में जिन तीन-चार शाइरों में उर्दू-ग़ज़ल में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान किया था, उनमें फ़ानी, हसरत मोहानी, यगाना, जिगर, असगर के साथ फ़िराक़ गोरखपुरी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। फ़िराक़ की शाइरी में जहाँ उर्दू की शास्त्रीयता है, वहीं अँगरेज़ी की रोमानियत है; किन्तु उनसे अधिक यह विशेषता है कि उनकी शायरी में भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का प्रभाव दिखता है। उनकी ग़ज़लों में प्रीतम, नयन, सुहागन, राग-सुहाग, जलतरंग आदिक शब्दों का प्रयोग मिलता है।”

प्रो० सुरेशचन्द्र द्विवेदी (पूर्व-विभागाध्यक्ष– अँगरेज़ी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय)

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अँगरेज़ीविभाग के पूर्व-अध्यक्ष प्रो० सुरेशचन्द्र द्विवेदी का मत है, “फ़िराक़ साहिब हिन्दी-अँगरेज़ी रोमाण्टिक आन्दोलन के आज़ाद योद्धा थे। उनका हिन्दी, अरबी- फ़ारसी तथा अँगरेज़ी-भाषाओं पर समान अधिकार था। वे एक विशेष प्रकार के सौन्दर्यबोधी थे, जिसके प्रतिक्रियास्वरूप उन्होंने ‘रूप’ नामक एक काव्यकृति की रचना की थी।”

उद्घोषक तौक़ीर अहमद ख़ान (ओबरा) का कहना था, “फ़िराक गोरखपुरी विलक्षण मेधा के शाइर, विद्वान्, आलोचक तथा अपने-आप में सम्पूर्ण साहित्यकार थे। वे अपनी शर्तों पर जीते और जीवन के मानदण्ड निर्धारित करते थे। वे अक्खड़पन और फक्कड़पन में निराला से कम नहीं थे। ‘गुले नग़्मा’ को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलना, उनकी रचना का सम्मान नहीं, बल्कि उस पुरस्कार का ही सम्मान था।”

डॉ० हसीन जिलानी (फ़िराक़ साहिब के आलोचना-विषय पर शोधकर्त्ता)

फ़िराक़ साहिब के ‘आलोचना’ विषय पर शोध करनेवाले डॉ० हसीन जिलानी (प्रयागराज) का कहना है,”फ़िराक़ गोरखपुरी एक शाइर ही नहीं थे, बल्कि एक आलोचक भी थे। आलोचना-विषय पर उन्होंने चार महत्त्वपूर्ण पुस्तकें लिखी थीं। चूँकि फ़िराक़ साहिब एक प्रख्यात शाइर के रूप में जाने जाते रहे, इसीलिए उनका आलोचना-पक्ष गौण बनकर रह गया।”

अन्त में, आयोजक ने समस्त सहभागीगण के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित की थी।