आओ जाने! क्या है डिजिटल वोटिंग सिस्टम और इसके फायदे क्या हैं?

देश के नागरिकों के ऊपर पिछले 75 सालों से विभिन्न पार्टियों की शासनसत्ता व एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था की मिलीभगत से होता आ रहा है खुला राजनैतिक अन्याय। जिसे कभी किसी बुद्धिजीवी ने जानने या समझने का प्रयास नही किया और जिन्होंने जाना-समझा भी तो उनका साथ अज्ञानता/दुर्ज्ञानतावस नागरिकों ने साथ नही दिया जिसकारण ही मौजूदा शासनसत्ता व उसकी मानसिक गुलाम शासनव्यवस्था ने नागरिकों की आज़ादी को सरेआम नीलाम करने पर उतारू है।
और देश का बुद्धिजीवी वर्ग है चुप!
आखिर क्यों?
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आज देश के पाठकगणों का ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा एक बहुत ही महत्वपूर्ण कुराजनैतिक सडयंत्र की तरफ वो भी अंत मे इस कुराजनैतिक षड़यंत्र के स्थाई रूप से खात्मे के समाधान के साथ।
अवश्य पढ़ें।
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पिछले 75 वर्षों से पूरे देश के राजनैतिक पक्ष-विपक्ष नेताओं/समर्थकों द्वारा लोकसभा व विधानसभा व अन्य चुनाव परिणाम का जश्न व मातम दोनो ही मनाया जाता है।

उदाहरण के साथ;
कभी किसी बुद्धिजीवी का ध्यान इस ओर क्यों नही गया कि जो जीतने वाला पक्ष है उसे सम्पूर्ण मतदाताओं द्वारा कितने प्रतिशत (%) मत दिया गया? क्या वास्तव में राज्य की जनता ने जीतने वाली पार्टी गठबंधन को अपना मिनिमम संवैधानिक समर्थन मत 51% के रूप में दिया?
इत्यादि!
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एक राज्य के हालिया चुनाव परिणाम को आईये जान लेते हैं :-
A पार्टी को कुल मत प्रतिशत 33.06% व
प्रतिस्पर्धी गठबंधन पार्टी B को कुल मत प्रतिशत 35.35% जिसमे B पार्टी को 18.72% व उसकी सहयोगी पार्टी C को 13.88% एवं अन्य सहयोगी पार्टी D को 2.75% कुल मत प्रतिशत मिला जिससे कुल प्राप्त मत 35.35% है।

मतलब राज्य की जनता ने किसी भी पार्टी या गठबंधन को स्पष्ट जनादेश नही दिया फिर भी जिन तीन पार्टियों (B+C+D) ने मिलकर गठबंधन बनाया और 35.35% मत हासिल किया है वे अब शासनसत्ता पर काबिज होंगे।

उससे बड़ी विडंबना यह है कि राज्य के कुल मतदाताओं में से 18.72% ने जिस B पार्टी को पसंद किया उस पार्टी के नेता श्री जी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठेंगे व सम्पूर्ण राज्य की शासनसत्ता को चलायेंगे।
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हे देशवासियों!
कुछ अजीब नही लगा आपको उपरोक्त पढ़कर व समझकर।
ठीक है मान लेते हैं हमारी पहले की पीढ़ियाँ अशिक्षित/कुशिक्षित/अल्पशिक्षित रहीं लेकिन क्या वर्तमान पीढ़ी भी वैसी है? क्योंकि, वर्तमान कुराजनैतिक कुव्यवस्थागत कुनीतियाँ ऐसे ही देश की साधारण जनता पर थोपी गयी हैं धूर्त कुपात्र कुनेताओं द्वारा जिन्हें हम परंपरा के नाम पर चुपचाप ढो रहे हैं।

आईये अब जान लेते हैं न्यायशील नियम नीति निर्णयों पर आधारित सुराजनैतिक सुव्यवस्थागत सुनीति।
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न्यायशील सुराजनैतिक नीति कहती है कि :-
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किसी भी न्यायशील राज्य या राष्ट्र की चुनावप्रणाली में किसी भी पार्टी उम्मीदवार की नेतृत्वकर्म (पंच-सरपँच से लेकर प्रधानमंत्री) हेतु वरीयता/पात्रता सिद्ध होने के बाद उसकी लोकप्रियता परीक्षण हेतु उसके राष्ट्र/राज्य/लोकसभा/विधानसभा या अन्य सार्वजनिक चुनाव प्रक्रिया से कर्म-पद-सम्पदाओं को प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों को कुल मतदाताओं द्वारा दिये जाने वाले किसी भी पार्टी उम्मीदवार को कुल मत का मिनिमम 51% व मध्यम 75% एवं अधिकतम 95% मत अनिवार्य हो।

अब सायद उपरोक्त पढ़ने व समझने के बाद पाठकगण अवश्य ही जान पाए होंगे वास्तविक राजनैतिक न्यायशील चुनावप्रणाली की प्रक्रिया को फिर भी यदि जिज्ञाषा रहे तो प्रश्नात्मक टिप्पणी लिखकर हमें सूचित करें।

उपरोक्त न्यायशील चुनाव प्रणाली के नियम को पढ़ने व समझने के बाद विवेकशील व्यक्तियों के मन मे यह जिज्ञासा अवश्य उत्पन्न हुई होगी कि चलो लेखक की बात में दम तो है लेकिन इसे धरातल पर कैसे लाया जा सकता है?
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अवश्य इस न्यायशील चुनावप्रणाली को धरातल पर लाया जा सकता है बल्कि विश्व स्तरीय लेवल पर प्रयास भी जारी हैं इस प्रणाली को लागू करने हेतु कुछ महत्वपूर्ण जिम्मेदार नागरिकों द्वारा पिछले 30 वर्षों से निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं ये उसी का नतीजा है कि आपको जागरूक करने हेतु एक प्रयास यह भी किया गया है।

…तो आइए जान लेते हैं इस न्यायशील चुनावी प्रक्रिया को कैसे बहुत ही आसान तरीके से सम्पूर्ण भारत मे लागू किया जा सकता है।

हमारे देश मे विभिन्न राजनैतिक पदों हेतु चुनाव करवाने के लिए एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था मौजूद है उसका नाम है भारतीय चुनाव आयोग (Election Commission Of India) जिसे ECI के नाम से भी जाना जाता है। ECI एक स्वतंत्र संवैधानिक सरकारी संस्था है। इसलिए यह न्यायशील चुनावप्रणाली को शीघ्र लागू करना उसकी प्राथमिक व अनिवार्य ड्यूटी है।

उपरोक्त न्यायशील नियम नीति निर्णयों पर आधारित चुनाव प्रणाली लागू करने में कोई अड़चन भी नही आएगी क्योंकि यह प्रणाली “वैधानिक” होने के बजाय “नीतिगत” है व न्यायसंगत है। चूँकि ECI एक स्वतंत्र व स्वायत्त संस्था है इसलिए न्यायोचित नीतिगत फैसले लेने हेतु वह स्वत्रंत भी है इसलिए कोई वैधानिक या राजनीतिक अड़चन आने का प्रश्न ही नही है।

तो चलिए विस्तृत रूप से इसे जानते हैं पहले…इस चुनावी पद्धिति का नाम है “आधार नंबर लिंक्ड 100% मोबाइल वोटिंग सुविधा” जिसे अंग्रेजी में 100% “डिजिटल वोटिंग सिस्टम” अर्थात DVS के नाम से जाना जाता है।

यह डिजिटल वोटिंग सिस्टम वर्तमान चुनावी पद्धति में लाने हेतु बस इतना ही करना है कि वर्तमान “इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया” (ECI) इसे स्वीकार करे व सभी प्रकार के राजनैतिक मतदान व सार्वजनिक संवैधानिक कार्यप्रणाली को जिसके लिए अनिवार्य रूप मतदान प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है उसके लिए वैधता से इस पद्धति को लागू करे।

चूंकि यह नीतिगत मुद्दा है तो इसके लिए सभी राजनैतिक दलों के लोकसभा सांसदों व राज्यसभा सांसदों द्वारा संसद में बिल के रूप में पास कराने हेतु वैधानिक प्रक्रिया से भी गुजरने की जरूरत नही होगी।

बस इतना ही करना होगा कि इसे वर्तमान ECI अनिवार्य रूप से नीतिगत फैसले के रूप में लागू करे और इससे संबंधित कार्य संचालन हेतु एक छोटी सी टीम का गठन करे।
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100% DVS के रूप में यह न्यायशील चुनावी प्रणाली लागू होने के बाद होने वाले विभिन्न फायदे :-
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1◆ इस आधार नंबर लिंक्ड 100% मोबाइल वोटिंग सिस्टम (डिजिटल वोटिंग सिस्टम) के लागू होने से सभी प्रकार के सरकारी चुनावी खर्चों की 100% स्थाई समाप्ति होगी।
इससे सरकारी ख़ज़ाने पर पड़ने वाला बोझ हमेशा के लिए समाप्त होगा चाहे छोटा इलेक्शन हो या बड़ा इलेक्शन हो।
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2◆ इस आधार नंबर लिंक्ड 100% मोबाइल वोटिंग सिस्टम (डिजिटल वोटिंग सिस्टम) के लागू होने से सभी प्रकार की बूथ कैप्चरिंग, गुंडागर्दी, फर्जी वोटिंग, गलत काउंटिंग व किसी भी प्रकार की धांधली या करप्शन से स्थाई मुक्ति मिलेगी इससे महालोकतंत्रीय व्यवस्था पर जनता का विश्वास स्वतः बढ़ेगा।
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3◆ इस आधार नंबर लिंक्ड 100% मोबाइल वोटिंग सिस्टम (डिजिटल वोटिंग सिस्टम) के लागू होते ही बहुत ही सरल व कम समय मे या ये कहें उसी दिन वोटिंग समाप्त होते ही परिणामो की घोषणा की जा सकेगी व किसी भी मतदाता को घण्टों समय बर्बाद नही करना पड़ेगा, व किसी भी Govt. अधिकारी की जरूरत नही पड़ेगी क्योंकि प्रत्येक मतदाता घर बैठे या अपने आफिस में काम करते हुए या पूरी दुनिया मे किसी भी कोने में रहते हुए वह 30 सेकंड से 1 मिनट में अपना मतदान कर पायेगा।
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4◆ इस आधार नंबर लिंक्ड 100% मोबाइल वोटिंग सिस्टम (डिजिटल वोटिंग सिस्टम) के लागू होते ही न तो बूथ बनाने की जरूरत पड़ेगी न ही प्रिसिडिंग अफसरों की जरूरत होगी न ही किसी अन्य Govt. एम्प्लोयी जैसे टीचर या BLO की जरूरत पड़ेगी।
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5◆ इस आधार नंबर लिंक्ड 100% मोबाइल वोटिंग सिस्टम (डिजिटल वोटिंग सिस्टम) के लागू होने से मतदान करने हेतु न तो किसी EVM या बैलेट पेपर या VVPAT या हाँथो में लगने वाली स्याही या बैलेट बॉक्स या किसी सुरक्षा या सुरक्षा अधिकारियों की जरूरत होगी बल्कि एक साधारण मोबाइल जिसमे इंटरनेट नही भी हो तो भी मतदाता वोट बड़ी आसानी से घर बैठे ही कर लेगा वो भी एक ही मोबाइल से पूरे परिवार के लोग मतदान कर पाएँगे।
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6◆ इस आधार नंबर लिंक्ड 100% मोबाइल वोटिंग सिस्टम (डिजिटल वोटिंग सिस्टम) के लागू होने से सभी प्रकार के संसदीय बिल, Govt. पॉलिसीज, सभी कोर्ट के डिसीज़न, व Right To Recall जैसी सुविधा हेतु जनता की राय लेने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। जिससे सही मायनों में लोकतंत्र को परिभाषित किया जा सके जो “जनता के लिए जनता द्वारा” की परिभाषा सिद्ध कर सकेगी। इस कार्यप्रणाली से हमारी लोकतंत्रीय व्यवस्था न्यायोचित रूप से लागू हो सकेगी और पूरी दुनिया मे हमारे देश के लोकतंत्र का डंका बजेगा।
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7◆ इस आधार नंबर लिंक्ड 100% मोबाइल वोटिंग सिस्टम (डिजिटल वोटिंग सिस्टम) के लागू होने से सम्पूर्ण देश के सभी मतदाता 100% मतदान कर सकेंगे। 100% मतदान प्रक्रिया से ही जिस उम्मीदवार या पार्टी को कुल मतदाता संख्या का 51% मिनिमम, 75% मध्यम व 95% अधिकतम मत प्राप्त होगा उसे ही लोकप्रियता परीक्षण में न्यायोचित रूप से उत्तीर्ण/विजयी घोषित करने में आसानी होगी। इसे लागू करने की अनिवार्यता के महत्व को ध्यान में रखकर हमारी सभी देशवासियों से यह अपील है कि इस व्यवस्था को तुरंत लागू किया जाए।

क्योंकि जिसदिन आधार नंबर लिंक्ड 100% मोबाइल वोटिंग व्यवस्था देश की जनता को मिल जाएगी समझ लीजिएगा वह दिन होगा असली महालोकतंत्र दिवस।

क्योंकि अभी देश की जनता को सिर्फ 5 साल में एकबार अपना नेता ही चुनने को मिलता है वो भी अनिवार्यतः मतदान प्रक्रिया न होने के कारण 1% या 2% मत पाने वाला भी शासनसत्ता में काबिज हो जाता है।

वह नेता 5 साल में जनता को किये गए वायदों पर अमल भी नही करता तब भी उसे वापस घर भेजने हेतु 5 साल इन्तज़ार करना पड़ता है। लेकिन यह व्यवस्था लागू होने के बाद तुरंत जनता के लिए जनता द्वारा यह चुनावी प्रक्रिया का इस्तेमाल करके उसे वापस भेजा जा सकेगा व इतना ही नही सभी संवैधानिक कार्यक्रमों हेतु सीधे जनता की राय ली जा सकेगी।

यदि इस न्यायशील व पवित्र लोकतंत्रीय व्यवस्था को लागू करने में संबंधित संवैधानिक संस्थाएं देरी करती हैं तो यह “जनता के लिए जनता द्वारा” की स्वीकारोक्ति की अवहेलना ही समझा जाएगा।

यह आर्टिकल लिखे जाने तक लगभग 123 करोड़ आधार नंबर लगभग सभी देशवासियों को वितरित हो चुके हैं जिन्हें मोबाइल नम्बरों के साथ लिंक्ड किया जा चुका है। जिसका दावा स्वयं हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी दिसंबर 2017 में गुजरात की एक चुनावी सभा में ही कर चुके है।

साथ ही देश के पूर्व कानून व IT मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद जी द्वारा प्रसारित उनके आधिकारिक फेसबुक पेज पर एक डिजिटल बैनर भी लेखक के पास साक्ष्य के रूप में मौजूद है।

इसलिए अगर यह न्यायशील व पवित्र व्यवस्था लागू करने में किसी भी प्रकार का विलम्ब किया जाता है तो वर्तमान जिम्मेदार संवैधानिक संस्था व संवैधानिक पदाधिकारी व मंत्री नेता सभी देश की 99% जनता की नजरों में अपराधी स्वतः सिद्ध हो जाएंगे व सज़ा के हकदार होंगे।

✍ लेखक : राम गुप्ता
(स्वतंत्र पत्रकार, नोएडा)
कार्यकर्ता/प्रचारक
आम आदमी पार्टी, उत्तरप्रदेश