
राघवेन्द्र कुमार “राघव”-
एक खबर के आधार पर बताया गया है कि पाकिस्तान ने बलूचिस्तान में अब तक 58 हजार लोगों की हत्या की है । विश्व में मानवाधिकारों का झण्डा बुलन्द करने वाले बरसाती मेंढक न जाने कहाँ गायब हो गए हैं । भारत को असहिष्णु बताने वाले भी अब कहीं नजर नहीं आ रहे हैं ।
हिंदुस्तान के बंटवारे से पहले बलूचिस्तान के लोग भी आजाद थे । वे कभी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं रहे । पाकिस्तान ने इस्लाम के नाम पर बाद में धीरे-धीरे इस हिस्से पर कब्जा कर लिया । पाकिस्तान बलूच आंदोलन को दबाने के लिए सेना का सहारा लेता है । सेना ने स्थानीय लोगों पर तरह-तरह के अत्याचार कर उन्हें भयाक्रान्त कर दिया है । बलूचिस्तान में 1970 के दशक में पांच वर्षों की अवधि में कम से कम 8000 बलोचों की हत्या पाकिस्तान द्वारा की गई। प्रश्न यह उठता है कि विश्व बिरादरी आखिर क्यो मौन है ? मानव हत्याओं के प्रति दोगले रवैये का आखिर क्या कारण है ? पाकिस्तान के अत्याचारों से बलूचों को मुक्ति दिलाने के लिए पूरी विश्व बिरादरी को एक होने की जरूरत है । खैर रक्त रंजित राजनीति के इतिहास वालों से तो कोई उम्मीद की नहीं जा सकती है ? किन्तु बलूचों को भारतीयों से बड़ी उम्मीदें हैं । हाल में रक्षाबन्धन पर्व में बलूचों की भागीदारी यही सन्देश देती है । हमें बलूच बहनों की राखी को रानी कर्मवती की राखी मानना होगा और हाँ भारतीय रहनुमाओं को हुमायूँ की तरह न बनकर विशुद्ध भारतीय की तरह व्यवहार करना होगा । तभी पड़ोस में शान्ति की उम्मीद की जा सकती है साथ ही कश्मीर में राष्ट्रीयता की बहाली की भी ।