आदित्य त्रिपाठी-
केन्द्र सरकार देश के 11 लाख शिक्षकों को प्रशिक्षित करने जा रही है । मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने प्रशिक्षण के लिए राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान को इसके लिए जिम्मेदारी दी है । सरकार ने उत्तर प्रदेश के निजी और सरकारी दोनों ही विद्यालयों को इसके लिए चुना है । उत्तर प्रदेश में जहाँ सरकारी स्कूलों के 128258 शिक्षकों को इसके तहत प्रशिक्षण दिया जाएगा वहीं निजी स्कूलों के 15559 शिक्षकों को भी प्रशिक्षित किया जाएगा । केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए कई तरह के प्रयास कर रही है ।
एक ओर मोदी सरकार शिक्षा व्यवस्था को अच्छा करने का प्रयास कर रही है वहीं दूसरी ओर दोयम दर्जे के शिक्षकों को प्रशिक्षित कर वह क्या करना चाहती है यह विचार करने योग्य है ? उत्तर प्रदेश सहित भारत के ग्रामीण अंचल और अन्य सरकारी शिक्षण संस्थानों की सच्चाई किसी से भी छिपी नहीं है । गैर प्रशिक्षित अध्यापकों की भर्ती सदैव ही सन्देह के घेरे में रही है । उत्तर प्रदेश सरकार ने शिक्षामित्रों को प्रशिक्षण दिलाकर क्या उन्हें योग्य बना दिया ? कभी भी आप गधे को धो साफ कर घोड़ा नहीं बना सकते, ठीक इसी प्रकार मात्र प्रशिक्षण से ही कोई योग्य शिक्षक नहीं बन सकता । आम तौर पर उत्तर प्रदेश सरकार में जो शिक्षक पात्रता परीक्षा का आयोजन किया जाता है वह भी शिक्षक बनने की आसान सी कसौटी है । आप साधारण प्रतिभाओं से असाधारण काम की उम्मीद कैसे कर सकते हैं । TET जैसी साधारण परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरान्त शिक्षकों से और अधिक की उम्मीद करना बेईमानी है । लेकिन स्थिति यह है कि आज TET की परीक्षा में प्रतिभाग करने वालों में से 80 से 85 फीसदी अनुत्तीर्ण हो जाते हैं । जब तक सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में योग्य शिक्षकों की भर्ती नहीं की जाएगी कभी भी भारत इच्छित प्रगति नहीं कर सकता है ।
भारतीय शिक्षा संस्थानों में से क्यों कोई भी वैश्विक पहचान बनाने में नाकाम रहा है ? शिक्षा का स्तर इमारतों की ऊँचाई से तय न होकर अध्यापकों की विद्वता व उनकी गुणवत्ता से तय होता है । किसी भी देश की प्रगति के लिए शिक्षा की मजबूत बुनियाद ही पहली आवश्यक शर्त होती है । परन्तु भारत में शिक्षा व्यवस्था का आधार तो जुगाड़ है । भारत में होने वाले अधिकतर शोध जुगाड़ पर ही आधारित होते हैं । जब तक इस जुगाड़ू व्यवस्था को खत्म नहीं किया जाता तब तक परिवर्तन असम्भव है । यदि सरकार वास्तव में शैक्षिक दुर्दशा के प्रति गम्भीर है तो सरकार को इस विषम स्थिति से निबटने के लिए कुछ कड़े कदम उठाने ही होंगे । काम चलाऊ शिक्षकों के स्थान पर योग्य व नवोन्मेषी शिक्षकों की नियुक्ति ही इस समय शिक्षा को संजीवनी देने का एक मात्र उपाय है ।