‘सर्जनपीठ’ का ह्वाट्सएप राष्ट्रीय शैक्षिक परिसंवाद-आयोजन’ सम्पन्न

विषाक्त होतीं परीक्षाओं और नियुक्तियों की कार्यपद्धतियाँ कैसे स्वस्थ हों?

आज शिक्षाजगत् में ग़लत तरीक़े से प्रश्नपत्र बनवाये जाते हैं; परीक्षाओं से पूर्व प्रश्नपत्र बिक रहे हैं; छद्म शैक्षिक प्रमाणपत्र बनाये जा रहे हैं। रिश्वत और पहुँच के आधार पर साक्षात्-परीक्षाओं के आयोजन होते हैं; योग्यता की अनदेखी कर अयोग्य और अपात्र लोग नौकरियाँ पा रहे हैं। रुपये लेकर नौकरियाँ दी जा रही हैं। परीक्षापरिणाम आ जाने के बाद प्रकरण न्यायालयों में पहुँच जाते हैं, जिससे अभ्यर्थियों के भविष्य पर ग्रहण लग जाता है। शिक्षाजगत् के अधिकारियों की मिली-भगत से ये सभी प्रकार के पापाचार किये जाते हैं; शासन भी भागीदार रहता है। ऐसे में, इन सभी विसंगतियों को दूर करने के लिए बौद्धिक, शैक्षिक,सांस्कृतिक, साहित्यिक तथा सामाजिक मंच ‘सर्जनपीठ’ के तत्त्वावधान में १५ जून को ‘ह्वाट्सएप राष्ट्रीय शैक्षिक परिसंवाद-समारोह’ का आयोजन किया गया था।

महेन्द्र कुमार सिंह

सर्वाधिक उपयोगी और महत्त्वपूर्ण सुझाव महेन्द्र कुमार सिंह (उपनिदेशक : बेसिक शिक्षा विभाग, उत्तरप्रदेश और प्रधानाचार्य : डाएट, मथुरा) ने प्रस्तुत किया, ”प्रश्नपत्र सरकारी पुस्तक (एन०सी०ई०आर० टी०सी०) सरकार-द्वारा अनुमोदित पुस्तकों से ही बनाये जायें। यदि सम्भव हो तो राष्ट्रीय/राज्यस्तर पर बनाने-हेतु एजेंसी का गठन किया जाये। प्रश्नपत्र मुद्रण करवाने के लिए एजेंसियों के चयन में कठोर मानदण्ड बनाये जायें और उन पर ध्यान दिया जाये। छद्म शैक्षिक प्रमाणपत्रों को रोकने के लिए आधुनिक तकनीकी जैसे ‘क्यू आर’ कोड/माइकर कोड का प्रयोग किया जाये। परीक्षा-केन्द्रों पर ‘थम्ब इम्प्रेशन’ के साथ-साथ ‘आई (रैटिना) स्कैनिंग और फेस स्कैनिंग भी करायी जाये। ऑनलाइन आवेदनपत्र भरते समय शैक्षिक प्रमाणपत्रों को भी अपलोड कराया जाये।

परीक्षा-केन्द्र के निर्धारण से पूर्व यह सुनिश्चित कर लिया जाये कि केन्द्रों पर ‘सी०सी०टी०ह्वी० कैमरा’ और ‘वीडियो रिकॉर्डिंग की सुविधा हो। सम्भव हो तो ‘एन०टी०ए०’ की भाँति परम्परागत परीक्षाओं के स्थान पर ‘ऑनलाइन’ परीक्षा करायी जाये।

प्रो० के० पी० मिश्र

प्रो० के० पी० मिश्र (अन्तरराष्ट्रीय विज्ञानी और अध्यक्ष : संघ लोकसेवा आयोग और राज्य लोकसेवा आयोग के बाहर की परीक्षा-भरतियों-हेतु एक स्वतन्त्र परीक्षा नियामक संस्था का गठन किया जाये तथा उसे संघ लोकसेवा आयोग को प्रदत्त संवैधानिक अधिकार और शक्तियाँ दी जायें, ताकि वह अनावश्यक राजनीतिक और प्रशासनिक हस्तक्षेप से बच सके।” ‘एशियन एसोसिएशन ऑव़ रेडिएशन रीसर्च’), मुम्बई ने कहा, “भारतीय परीक्षा और नियुक्ति-पद्धतियों की ताकतों और कमज़ोरियों पर देशहित का ध्यान रखते हुए, खुलकर और निर्भय होकर चर्चा की जाये। समाज में व्याप्त स्थिति को ज्यों- की-त्यों कहने की हिम्मत लानी होगी। भारतीय शिक्षा, परीक्षा तथा नियुक्तियों की ख़ामियाँ और कमज़ोरियाँ खुलकर कही और लिखी जायें।शिक्षा-गोष्ठियों, समितियों, आयोगों आदिक की सिफ़ारिशों का समादर करते हुए उनका अनुपालन किया जाये। सुधार सम्बन्धी जो नीतियाँ किसी दूसरे नज़रिये से तय हो जाती हैं, उन्हें पारदर्शी बनाया जाये। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक आये-दिन भ्रष्टाचार और अशोभनीय कारनामों को समाप्त करने के लिए कर्त्तव्यपरायणता को प्राथमिकता दी जाये।

प्रो० पारसनाथ पाण्डेय

प्रो० पारसनाथ पाण्डेय (प्रख्यात शिक्षाविद् और निवर्तमान कुलपति) की मान्यता है, “इन विसंगतियों के मूल में अन्तरात्मा का न जाग्रत होना है। संकुचित स्वार्थों की तिलांजलि का भाव ऐसे पापकर्म से परे धकेलता है। परीक्षा और नियुक्तियों में जैसे ही कोई भ्रष्टाचार दिखे, तत्काल आरोपितों को दण्डित करना होगा। यह देखना-समझना होगा कि एक ग़लत काम से कितने लोग प्रभावित होते हैं, उसके आधार पर कठोर दण्ड का प्रविधान करना होगा। ऐसे समाजद्रोहियों पर चौतरफ़ा प्रहार करते हुए, शासन की ओर से प्रताड़ना का दण्ड मिलना चाहिए। समाज का मापदण्ड यदि पैसा रहेगा तो उस पाप को कोई नहीं रोक नहीं सकता। भौतिकतावादी और विलासिता की प्रवृत्तियों से दूर रहकर अपनी इच्छाओं को नियन्त्रित करना होगा, तभी हम इस भयावह स्थिति का सामना कर सकेंगे।”

परिसंवाद-आयोजक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

परिसंवाद-आयोजक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने बताया, देश की समस्त प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं के लिए स्वतन्त्र रूप से वहीं कार्यरत अनुभवसम्पन्न और कर्मनिष्ठ अधिकारियों की एक स्वतन्त्र समिति का गठन हो, जो प्रश्नपत्र-रचना से लेकर परीक्षा कराने का दायित्व सँभाले; वहीं एक स्वतन्त्र समिति ऐसी भी गठित हो, जो नियुक्ति-प्रक्रिया को पारदर्शी बनाते हुए सुयोग्य अभ्यर्थियों का चयन करा सके। प्राय: उक्त दोनों ही प्रकरणों में इस समय छद्म योग्यताधारियों का वर्चस्व है। ऐसे में, उक्त दोनों ही समितियों के अन्तर्गत किसी भी प्रकार की विसंगति आने पर दोनों ही समिति को तत्काल भंगकर दण्डात्मक काररवाई की जाये। इतना यदि हो गया तो समस्त सयस्याएँ स्वत: समाप्त हो जायेंगी।”

प्रो० ईश्वरशरण विश्वकर्मा

प्रो० ईश्वरशरण विश्वकर्मा (अध्यक्ष : उत्तरप्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग, प्रयागराज) ने सुझाव दिया, “शिक्षा-जगत् की परीक्षा सम्बन्धी सभी संस्थाओं की परीक्षा-प्रणाली अत्यन्त गोपनीय, शुचितापूर्ण तथा विषय-विशेषज्ञों के अधीन होने से प्रश्नपत्रों की रचना और उसकी समस्त प्रक्रियाएँ स्वस्थ होंगी। परीक्षाओं के संचालन में शासन और स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी भी सुनिश्चित होनी चाहिए, जिससे शैक्षिक क्षेत्र को दूषित करनेवाले असामाजिक तत्त्वों के षड्यन्त्रों से इसकी शुचिता को अक्षुण्ण रखा जा सके। भारत की लोकतान्त्रिक प्रणाली में संवैधानिक व्यवस्था के अन्तर्गत न्याय के लिए कोई भी न्यायालय की शरण ले सकता है। इससे परीक्षा-परिणाम प्रभावित नहीं होते हैं; कुछ अपवाद हो सकते हैं। व्यक्तित्व-सर्जन, शैक्षिक संस्कार तथा चरित्र-सर्जन के माध्यम से ही समाज, राष्ट्र तथा विश्व की व्यवस्था का संचालन होता है, जो शिक्षा से ही सम्भव है, इसलिए इसमें सहभागी घटकों को संस्कारित, समर्पित तथा पूजा भावी होना ही पड़ेगा।”

डॉ० कृपाशंकर पाण्डेय

डॉ० कृपाशंकर पाण्डेय (सहायक प्राध्यापक : मुंगेर विश्वविद्यालय) का मत है, “प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रत्येक स्तर पर शुचिता और पारदर्शिता का पालन होना चाहिए। किसी भी स्तर पर किसी प्रकार का भ्रष्टाचार पाये जाने पर उसे कुचल देना होगा और भ्रष्टाचारियों को क़ानून के अनुसार कठोरतम दण्ड देना होगा, जो समग्र समाज के लिए एक ठोस उदाहरण बनेगा।दृढ़ इच्छाशक्ति और संकल्पबल से युक्त होकर नौजवानों को आज भ्रष्टाचार के विरुद्ध शंखनाद करने की आवश्यकता है। शासन और प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध बुद्धिजीवियों को भी लामबन्द होकर समाज को जागरूक करना होगा। इसके साथ ही बढ़ती हुई बेरोज़गारी के कारणों की भी पहचान करनी होगी। अन्धाधुन्ध बढ़ती हुई जनसंख्या पर लगाम कसकर बेरोज़गारी को कम किया जा सकता है। नीतिनिर्माताओं पर समाज दबाव बनाये, ताकि वे ऐसी नीतियाँ बना सकें, जिससे समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी तथा बढ़ती हुई जनसंख्या को नियन्त्रित किया जा सके।”

अवधूत स्वामी आनन्द
अवधूत स्वामी आनन्द (संरक्षक : शिवगामी ट्रस्ट, प्रयागराज) का मत है, "शिक्षा मनुष्य की आन्तरिक दिव्य क्षमताओं को प्रकट करने की प्रक्रिया है। शिक्षा केवल एक बौद्धिक अनुशासन नहीं है। वर्तमान समय में शिक्षा के गिरते हुए स्तर का कारण मनुष्य की  चिन्तायुक्त और चिन्तन-विरक्त जीवनशैली है। आधुनिक शिक्षा-प्रणाली का ध्यान बाहरी दुनिया के तथ्यों को याद करने पर है, जो कि मनुष्य के आन्तरिक विकास की अनदेखी करता है।"

  अन्त में परिसंवाद-आयोजक ने समस्त विचारकगण के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की।