समाज के प्रहरी को ही जब पंगु बना दिया जाएगा तो समाज का पतन होना स्वाभाविक है

विजय कुमार (सामाजिक कार्यकर्ता/स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक)


बलि प्रथा और कुर्बानी प्रथा का हम विरोध करते हैं । साथ ही मीडिया से अपेक्षा रखते हैं कि निष्पक्ष भाव से दोनो मामलों की खबरों को उतनी ही प्रमुखता दें । पर क्या मीडिया हमें ऐसा दिखाती है क्या ? यदि ऐसा नहीं तब मीडिया को क्या समझा जाए ? इस मामले पर आप लोग अपनी राय जरूर दें कि मैं गलत तो नही बोल रहा ? खासकर एन.डी.टी.वी. को जरूर इस बात पर राय देनी चाहिए क्योंकि यह सिर्फ मेरा कहना नहीं है । आज भारत के करोड़ों लोग मीडिया की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर रहे हैं । जो कुछ लोगों की गलत सोच के कारण पूरी भारतीय मीडिया के अपमान व नुकसान का विषय है । लोगों का मीडिया पर से भरोसा क्यों उठ रहा है आज यह मीडिया के लिए गंभीर प्रश्न बन चुका है । इस पर चिंतन करते हुए जहाँ कमी हो इसमे सुधार लाने की जरूरत है । ताकि देश के चौथे स्तंभ और समाज से सीधे जुड़कर हर एक की समस्या को मुखरित करने की सबसे बड़ी जिम्मेदार वर्ग मीडिया अपनी मूल विचारधारा पर कायम हो सके । मीडिया कर्मियों के व्यक्तिगत दुखों और परेशानियों की कोई सीमा नहीं है । क्योंकि इतनी बड़ी सामाजिक जिम्मेदारी होने के बावजूद आजादी के सत्तर साल बाद आज तक किसी भी सरकार ने इनके कल्याण एवं इनकी आर्थिक परेशानियों ,परिवार की दयनीय स्थिति के बारे मे कोई ठोस इंतजाम नहीं किया । मीडिया में बदलाव व अपने पथ से भटकने का सबसे बड़ा कारण भी यही हो सकता है । देश का सबसे बड़ा बुद्धजीवी वर्ग मीडिया में सम्मलित रहा है फिर वह अपने पथ से भ्रष्ट होने को क्यों विवश हुआ । क्या कभी किसी सरकार ने ईमानदारी से इस विषय में सोचा भी ?आखिर क्यों आज तक किसी भी सरकार ने समाज के जिस वर्ग को हर परिस्थिति में निष्पक्ष रखा जाना चाहिए उसे तिरस्कृत किया या अपने पैर की जूती समझा ? सिर्फ अपनी जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल किया यह बहुत बड़ा चिंतनशील प्रश्न है । यदि आपने गहराई से सोचकर इसका जवाब ढ़ूढ़ने की कोशिश की तो आपको जवाब अपने भीतर से ही मिलेगा जो किसी भी सरकार के लिए बेहद शर्मनाक हो सकता है । मीडिया के आत्मसम्मान को मसलकर उन्हे पथभ्रष्ट होने को विवश करना कहाँ तक उचित है ?

सामाजिक सुधार के लिए मीडिया कर्मियों व उनके परिवारों के कल्याण व उनकी सुरक्षा के बारे में गहन चिंतन करते हुए सभी उपयुक्त निर्णय लिए जाने सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं । निश्चित ही हमारे सामाजिक पतन में यह भी एक प्रमुख कारण है । क्योंकि समाज के सबसे महत्वपूर्ण सिस्टम समाज के प्रहरी को ही जब पंगु बना दिया जाएगा तो समाज का पतन होना स्वाभाविक है । सिर्फ शब्दों की प्रशंसा से अपना और अपने परिवार का पेट नहीं भरता साहब ? प्रोफेशन के रूप में हर समय मेहनत करने और खबरों को संकलित करने में, संवाद में, संचार में जेब से पैसे भी खर्चने पड़ते हैं । ताकतवर और महाभ्रष्ट लोगों को कारगुजारियों को मुखरित करने में अदम्य साहस और जीवन भी दाँव पर लगाना पड़ता है । फिर इस वर्ग की जिम्मेदारी से आप क्यो कतराते हैं ? स्वयं को भी शुद्ध रखना है तो उसकी देखरेख करने वाले के कल्याण के बारे मे भी तो सोचो !