श्री जय प्रकाश सिंह, बैसवारा इंटर कॉलेज लालगंज, रायबरेली में जीव विज्ञान विषय के हमारे शिक्षक थे।
वह अपने विषय के विद्वान थे, सभी बच्चों पर बराबर ध्यान देते थे, पूरे मन और ऊर्जा से पढ़ाते थे। साथ ही उनकी एक और खास बात जो सबको आकर्षित करती थी वह थी– उनकी अति विशिष्ट आवाज । अमूमन महिलाओं और दक्षिण भारतीयों की आवाज में shrill (high pitch) अधिक होता है जिसके कारण धीरे से बोलने पर भी उनकी बात बिल्कुल स्पष्ट और दूर तक सुनाई पड़ती है।
हालांकि गुरुजी उत्तर भारतीय थे और पुरुष तो थे ही लेकिन उनकी आवाज नैसर्गिक रूप से high pitch की थी। इसीलिए वह जब भी व्याख्यान देते थे, उनकी हर एक बात स्पष्ट रूप से कक्षा के सभी छात्रों तक पहुंचती थी। अब आगे का काम छात्रों का था कि वह अपने कानों तक पहुंचे ज्ञान को अपने दिमाग में रखें या एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दें।
जहां तक मुझे याद है दसवीं की छमाही की लिखित परीक्षा में मुझे जीव विज्ञान विषय में 80 में से 68 अंक मिले। गुरुजी कक्षा में जब उत्तर पुस्तिकाओं का छात्रों के अवलोकन हेतु वितरण कर रहे थे तो उन्होंने मेरा नाम विशेष रूप से लिया कि-
“हालांकि विनय को मैंने 68 नंबर ही दिए हैं लेकिन इसके विषय ज्ञान और लिखने के तरीके से मैं काफी प्रभावित हूँ। मेरा मन अंक देकर अभी भी भरा नहीं है और गुरु जी ने यह कहते हुए सबके सामने ही मेरी उत्तर पुस्तिका का मूल्यांकन एक बार पुनः शुरू कर दिया। जहां भी उन्हें संभावना लगी, वहां मेरे अंक बढ़ाकर गुरुजी ने मेरा कुल योग 72 कर दिया।
मुझे अंक बढ़ने की खुशी तो होनी ही थी और हुई भी। लेकिन जिस तरह से पूरी कक्षा में, सबके सामने गुरु जी ने मेरी प्रशंसा की, उससे मैं गद्गद हो गया था।
हाईस्कूल की बोर्ड-परीक्षा में भी गुरु जी के कुशल और अनुभवी मार्गदर्शन तथा प्रायोगिक परीक्षा में 20 में से पूरे 20 अंक दिए जाने के कारण मुझे जिस एकमात्र विषय में डिस्टिंक्शन मिला, वह जीव विज्ञान ही था।
अब होना तो यह चाहिए था कि जिस विषय में मुझे डिस्टिंक्शन मिला , उस विषय की मैं आगे भी पढ़ाई करता। गुरुजी भी यही चाहते थे। लेकिन चूंकि जीव विज्ञान के साथ यह ठप्पा लगा हुआ था कि यह लड़कियों का विषय है और मैं जाहिर रूप से लड़का था। इसलिए इंटरमीडिएट में सरस विषय जीवविज्ञान की दो पुस्तकों के स्थान पर नीरस विषय गणित की पूरी पांच पुस्तकों का अध्ययन मुझे करना पड़ा।
हालांकि विधि का विधान कुछ ऐसा हुआ कि जीव विज्ञान और गणित दोनों ही मेरे काम नहीं आ रहे हैं। फिलहाल मेरा जीविकोपार्जन हिंदी-अंग्रेजी अनुवाद कार्य से हो रहा है। परंतु आज भी यह जरूर सोचता हूं कि गणित की पाइथागोरस प्रमेय तथा Sin θ और Cos θ तो मेरे दैनिक जीवन में कभी काम न आए लेकिन अगर गुरु जी के कहने से जीवविज्ञान पढ़ लेता तो कम से कम यह तो पता रहता कि लड़की पैदा होने के जिम्मेदार पुरुषों के गुणसूत्र हैं या महिलाओं के?
(आशा विनय सिंह बैस)
श्री जयप्रकाश सिंह गुरुजी के शिष्य