गुजरात ‘नोटकाण्ड’ के लिए ज़िम्मेदार कौन?

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


गुजरात में पाटीदारों को पटाने के लिए ‘भारतीय जनता पार्टी ‘ के नेताओं ने १० लाख रुपये नक़्द दिये थे और फिर कहा कि शेष ९० लाख रुपये बाद में दिये जायेंगे। इसका जीता-जागता वीडियो भी ‘साक्ष्य’ के रूप में ५००-५०० रुपये के नोटों की २० गड्डियाँ जनमानस के मध्य प्रत्यक्ष हो चुकी हैं; हो रही हैं। निखिल सवानी ने भी बी०जे०पी० को आरोपित किया है। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के मित्र नरेन्द्र पटेल ने सार्वजनिक रूप में स्वीकार किया है कि उसे गुजरात में ‘भारतीय जनता पार्टी’ के अध्यक्ष ने दिये हैं।
अब प्रश्न है, देश का निर्वाचन आयोग इस घिनौने कृत्य से परिचित है? यदि नहीं तो यह निर्वाचन आयोग के आयुक्तों की मक्कारी है। यदि इस दुष्कृत्य से परिचित है तो क्या कोई ठोस क़दम उठायेंगे?
बहरहाल, जो भी सत्य है, वह सामने आना चाहिए।

एड. विनय पाण्डेय- भाजपा गुजरात जीतने के लिए साम दाम दंड भेद सब अपना रही है .
पर हार होना तय ..मैं इस वक्त गुजरात मे ही हू जनता मे इनके खिलाफ माहौल चल रहा है

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- वह तो सुस्पष्ट दिख रहा है।

रविन्द्र पाण्डेय- सरकार बनाने के लिए जब इस देश की संसद में नोटों की गड्डियों को रखा जा चुका है तो अब कुछ बचा ही नहीं। सारे दल साम दाम दंड भेद की नीति पर चलकर सिर्फ पीएम को घेरने की कोशिश में लगे हैं और कुछ नहीं। हार्दिक पटेल व उनके दोस्त क्या अपने घर की उपज बेंचकर राजनीति कर रहे हैं। हां नोट कांड में जो दोषी हों उसे अवश्य दंडित किया जाना चाहिये। पाटीदारों के अतीत के आंदोलन को और मजबूती देने के लिए जमकर वसूली चल रही है। मनसे की तरह।चुनाव का समय है अभी तो बहुत खेला होना है

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- सार्थक टिप्पणी है। कोई किसी से कम नहीं है। झारखण्ड का नोट-प्रकरण, बंगारू दत्तात्रेय, मायावती आदिक के सन्दर्भ में ऐसा घटित हो चुका है। ऐसे खेलों के दुष्परिणाम सदैव लोकतन्त्र के आधार को शिथिल करते आ रहे हैं।

रविन्द्र पाण्डेय- क्या करेंगे पाण्डेय जी जब जड़ में ही मट्ठा पड़ा है।

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय– श्रद्धेय पाण्डेय जी! हम ईमानदार विचारजीवी हैं; आवाज़ उठती रहेगी।

रविन्द्र पाण्डेय- जब इस देश का मीडिया तक बिक गया तब क्या रह गया। पेड न्यूज का धंधा सारी सीमाएं लांघ चुका है। advp लिखकर कुछ भी छाप अथवा बोल दिया जाता है। आवाज तो उठती ही रहेगी परिणाम चाहे जो हो।

जगनन्नाथ शुक्ल- गुरुदेव! ऐसे अनिवार्य विषयों पर भारत में समाचार माध्यम और संविधानिक संस्थान अधिकांशतः मौन रहते हैं।

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- परन्तु हमारी आवाज़ उठती रहेगी।