डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-
उत्तरप्रदेश के मुख्य मन्त्री आदित्यनाथ योगी एक गम्भीर राजनेता हैं और उत्तरप्रदेश राज्य के मुख्य मन्त्री भी। क्या यह विषय उनके संज्ञान में नहीं है कि आज राज्य में प्राथमिक, माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा-शालाओं में लाखों की संख्या में अध्यापकों का अभाव है। उस शिक्षार्जन का क्या औचित्य, जो सेवा के लिए अपेक्षित शिक्षा ग्रहण करने के बाद भी विद्यार्थियों को नियोजित न कर सके?
वर्ष २०११ से अब तक समूचे राज्य में बी०एड्०, टेट आदिक शिक्षा-प्रशिक्षा प्राप्त विद्यार्थी अध्यापक की नौकरी पाने के लिए इधर-से-उधर भटक रहे हैं, परन्तु उत्तरप्रदेश के शिक्षालय के दरवाज़े उनके लिए बन्द दिख रहे हैं! इस सन्दर्भ में राज्य के युवा-वर्ग के प्रति मुख्य मन्त्री, शिक्षामन्त्री, राज्यपाल आदिक की क्या कोई सकारात्मक भूमिका नहीं है? यदि नहीं तो क्यों? कितनी कठिनाइयाँ सहकर माँ-बाप आपने बच्चों को अत्युत्तम शिक्षा दिलाते हैं और जब उन्हें सेवा में लेने का समय आता है तब सरकार हाथ खड़े कर देती है और ‘वोट की राजनीति’ को प्रश्रय देने के लिए अयोग्य और अवैध शिक्षा अर्जित भीड़ के सम्मुख नतमस्तक हो जाती है। ऐसा ही यदि करना हो तो क्यों न राज्य के सारे विद्यालय स्थायी रूप में बन्द कराकर, वहाँ ‘बाबाओं के डेरे’ खोल दिये जायें? वहाँ हिन्दुत्व भी पलता रहेगा; उल्लू भी सीधे होते रहेंगे तथा आर्थिक साम्राज्य भी स्थापित हो जायेगा।
उत्तरप्रदेश के मुख्य मन्त्री, शिक्षामन्त्री तथा राज्यपाल उक्त विषय को निम्नांकित प्रश्नों को समझते हुए, गम्भीरतापूर्वक अपने संज्ञान में लें :——-
१- सुपात्र विद्यार्थियों की मन:दशा को समझने के लिए उत्तरप्रदेश-सरकार को संचालित करनेवाले मन्त्री-मुख्यमन्त्री, राज्यपाल आदिक निर्णायक समय क्यों नहीं दे रहे हैं?
२- वे विद्यार्थियों के प्रतिनिधियों के साथ प्रत्यक्षत: सकारात्मक संवाद करने से कतरा क्यों रहे हैं?
३- निर्धारित की गयीं समस्त अभियोग्यता, अर्हता तथा पात्रता होने के बाद भी राज्य-सरकार उन्हें उनका वैध अधिकार देने से कतरा क्यों रही है?
४- जो समय उन विद्यार्थियों का अध्ययन-अध्यापन करने का है, उसे राज्य-सरकार ‘कोर्ट-कचहरियों’ के चक्कर लगवाने में क्यों अपव्यय करा रही है?
५- क्या ऐसे योग्य विद्यार्थियों की उपेक्षा कर, राज्य-शासन उन्हें कुण्ठित कर अपराधशास्त्र की दीक्षा लेने के लिए बाध्य नहीं कर रहा है?