“वन्दे मातरम्” को किसी पर भी क्यों थोपा जा रहा है?

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-


स्वाधीनता-दिवस के अवसर पर “वन्दे मातरम्” गाने का आदेश ‘इस्लामिक’ शिक्षण-संस्थाओं पर ही क्यों, उत्तरप्रदेश के सारे शैक्षणिक संस्थाओं पर क्यों नहीं? उत्तरप्रदेश-शासन की ओर से देश के सारे शिक्षण-संस्थानों के अधिकारियों के पास इस आशय का निर्देशपत्र प्रेषित किया गया है— पन्द्रह अगस्त के दिन सभी विद्यार्थी, अध्यापक, शिक्षणेतर कर्मचारी आदिक “वन्दे मातरम्” का गान करेंगे और उसका वीडियो बनाकर शासन-कार्यालय में भेजेंगे। क्या ‘मिशनरी शिक्षण-संस्थाओं’ को भी ‘विशेष निर्देश-परिपत्र’ उत्तरप्रदेश-शासन की ओर से भेजे गये हैं? बलप्रयोग कराकर किसी से भी “वन्दे मातरम्” का गायन करा लेना, किस ‘राष्ट्रीयता’ और ‘बहादुरी’ का सूचक है?
यह एक प्रकार का शासकीय कुचक्र है, जिसका प्रभाव उत्तरप्रदेश राज्य में साम्प्रदायिकता का विष-वमन करने का काम करेगा।
बच्चों के अधिकतर शिक्षालयों की जर्जर व्यवस्था है; उन्हें पोषक आहार समुचित ढंग से नहीं दिया जा रहा है; उन्हें अभी तक पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध नहीं करायी गयी हैं; सभी विद्यार्थियों को दिये जानेवाले दो-दो गणवेश कई शिक्षणसंस्थाओं के विद्यार्थियों को उपलब्ध नहीं कराये गये हैं; उनके लिए पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं है। अध्यापकों के अभाव के कारण उनकी शिक्षा-दीक्षा विधिवत् नहीं हो पा रही है; योग्य अध्यापकों का भी अभाव है; उनके लिए समुचित शौचालय आदिक का अभाव है।
उत्तरप्रदेश-शासन की चिन्ता उपयुक्त विषयों के प्रति क्यों नहीं है?
किसी पर थोपकर कुछ कहला देना तो ‘बलात्कार’ की श्रेणी के अन्तर्गत आता है, जो ‘पूर्णत:’ असंवैधानिक है; फिर उसका उद्देश्य क्या है। एक प्रश्न और, इसकी विश्वसनीयता क्या है, देश के सारे ग़ैर-इस्लामिक लोग ‘राष्ट्रवादी’ हैं?