बलात्कार के आरोपित स्वामी चिन्मयानन्द स्वामी की गिरिफ़्तारी अभी तक क्यों नहीं?

शाहजहाँपुर यौन दुष्कर्म-प्रकरण

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

इन दिनों उत्तरप्रदेश में बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, यौन-उत्पीड़न आदिक अपराध प्रगति पर हैं। राजनेता, सन्त, महन्त, धर्मोपदेशक ‘बलात्कारी’ के रूप में बलात्कार-आसन पर स्थापित होते जा रहे हैं; किन्तु ‘नारी-स्वाभिमान’, ‘नारी-सशक्तीकरण’, ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ आदिक उद्घोष पूरी तरह से ‘थोथे’ और ‘उथले’ सिद्ध हो चुके हैं। २४ अगस्त, २०१९ ई० को शाहजहाँ की बलात्कार-पीड़िता का वी०डी०ओ० सार्वजनिक हुआ था और उसका पिता भी न्याय के लिए गुहार लगाता रहा; परन्तु उस पर उत्तरप्रदेश-सरकार की ओर से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी। वह पीड़िता लगातार सम्बन्धित थाने में रिपोर्ट (एफ० आइ० आर०) करने गयी थी; परन्तु उसे भगा दिया गया था। इतना ही नहीं, वह पीड़िता कहती रही कि चिन्मयानन्द अपने शिक्षणसंस्थान में पढ़नेवाली कई लड़कियों के साथ भी व्यभिचार, यौन-उत्पीड़न करता रहा है।

बेशक, राम रहीम की भी गतिविधियाँ इसी प्रकार की रही हैं। ठीक ऐसा ही उन्नाव-प्रकरण में भी उत्तरप्रदेश की पुलिस की घिनौनी भूमिका रही है। अन्तत:, दोनों ही प्रकरणों में देश के शीर्षस्थ न्यायालय उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश को हस्तक्षेप कर, प्रकरण को न्याय-प्रक्रियाओं के साथ सम्बद्ध करना पड़ा है। इससे सिद्ध हो जाता है कि केन्द्र और उत्तरप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से गठित सरकारें क्रमश: भारतीय जनता पार्टी के विधायक सेंगर और सांसद स्वामी चिन्मयानन्द को बचाने के लिए पूरी तरह से बचाव की मुद्रा में दिख रही है। प्रश्न है, उच्चतम न्यायालय ने जब उच्च न्यायालय के अन्तर्गत एस०आइ०टी० गठन करने का निर्देश किया था; सम्बन्धित साक्ष्यों के आधार पर पीड़िता के प्रकरण को गम्भीरता से लिया था तब एस०आइ०टी० के अधिकारियों ने बलात्कार के आरोपित स्वामी चिन्मयानन्द को पुलिस-संरक्षण में लेकर क्या पूछताछ की थी? कारण जो भी रहा हो, उत्तरप्रदेश-पुलिस की विश्वसनीयता सन्दिग्ध दिख रही है, जिसकी जाँच किसी तटस्थ एजेंसी से करायी जानी चाहिए। ‘मुमुक्ष आश्रम’ के स्वामी संयोग से सत्ताधारी दल से जुड़े हैं; वे विश्व हिन्दू परिषद् से भी सम्बद्ध हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद् के अधिकारियों की चुप्पी क्या संकेत कर रही है? भारतीय जनता पार्टी की मुखर राजनीतिक महिलाएँ और स्त्री-मर्यादा की ठीकेदार स्मृति ईरानी, जया प्रदा-सहित सभी महिला विधायक-सांसद अभी तक मौन क्यों हैं? इतना ही नहीं, काँग्रेस की शीर्षस्थ नेत्री सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी-सहित विपक्ष के सभी दलों की महिलाओं की आँखों पर पट्टियाँ क्यों बँध गयी हैं तथा सत्ता और विपक्षी दलों के राजनेता ‘धृतराष्ट्र’ की भूमिका में क्यों दिख रहे हैं? वे क्यों नहीं, बेईमान, मक्कार तथा धूर्त्त सत्ताधारी दल के विरुद्ध आन्दोलन कर रहे हैं? सच तो यह है कि पक्ष और विपक्ष “चोर-चोर मौसेरे भाई” को सार्थक करते आ रहे हैं और देश की जनता की भावनाओं का शोषण किया जाता है। वहीं दूसरी ओर, स्वयम्भू शंकराचार्य,रिश्वत देकर महामण्डलेश्वर की छद्म उपाधि धारण करनेवाले महामण्डलेश्वर, तथाकथित श्री-श्री रविशंकर, योगगुरु रामदेव, अखाड़ेबाज़ महन्त, एक हज़ार आठ स्वामी कहलानेवाले, चरित्र और आचरण-शुद्धता की सीख सिखानेवाले धर्मगुरु हिन्दुत्व के चेहरे पर कालिख़ पोतनेवाले उक्त काण्ड पर ‘मौनी बाबा’ क्यों बने हुए हैं?

इस विषय में जैनधर्म के अनुयायियों की भूमिका अनुकरणीय है, जिसके अन्तर्गत किसी जैनस्वामी-द्वारा एक किशोरी के यौन-उत्पीड़न करने पर उनका धार्मिक वस्त्र उतार कर, ‘सामान्य वस्त्र’ पहनाकर उसे जैनधर्म से अलग कर दिया गया था।

उल्लेखनीय है कि बलात्कार-पीड़िता कथित स्वामी के शिक्षण-संस्थान में अध्ययन कर रही थी और जाने-अनजाने स्वामी के चंगुल में फँस गयी और एक वर्ष तक स्वामी चिन्मयानन्द की तेलमालिश और यौनपूर्ति करती रही। ऐसे में, यहाँ कुछ स्वाभाविक प्रश्न उछलते हैं :– आख़िर ऐसा क्या था, जिसके कारण वह छात्रा एक वर्ष तक चिन्मयानन्द के अंग-प्रत्यंग की मालिश करती रही और उसकी शारीरिक भूख मिटाती रही? एक साल बाद उस महिला को अपने साथ ‘बलात्कार’ किये जाने के दर्द का अचानक अनुभव कैसे हुआ? वह जिस युवक के साथ तब से लेकर अब तक अपना दोस्त बनाकर रह रही है, उसने चिन्मयानन्द से फिरौती की माँग क्यों की थी? ये पहलू भी जाँच के विषय हैं, जिसके निष्कर्ष प्रकरण को निबटाने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। स्वामी चिन्मयानन्द पर यह पहला आरोप नहीं है; इससे पूर्व नवम्बर, २०११ ई० में एक अन्य महिला ने यौन-उत्पीड़न का आरोप लगाया था, जिस पर कोई काररवाई नहीं हुई थी।

बहरहाल, सम्बन्धित थाना के पुलिस-अधिकारियों ने एक बार फिर से ‘उत्तरप्रदेश पुलिस’ को ‘और अधिक’ दाग़दार और अविश्वसनीय बना दिया है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १७ सितम्बर, २०१९ ईसवी)