‘आख़िरी साँस’ और ‘ऑक्सीजन के सच’ पर पर्दा क्यों?

बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज की कलंक-कथा!

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

पुणे (महाराष्ट्र) के सन्त और स्वतन्त्रता-सेनानी बाबा राघवदास यद्यपि अब हमारे बीच नहीं हैं तथापि उनकी स्मृति में वर्ष १९६९ में गोरखपुर जनपद में निर्मित कराया गया चिकित्सालय ‘बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज’ इन दिनों हज़ारों बच्चों के क़ब्रगाह के रूप में मशहूर हो चुका है। बाबा राघवदास को ‘पूर्वांचल का गांधी’ भी कहा जाता है। वर्षों से यहाँ मासूम शिशु और बाल उस चिकित्सालय-प्रबन्धन-विभाग द्वारा बरती जा रहीं अनियमितताओं के कारण मरते आ रहे हैं। हमेशा की तरह से तत्कालीन सरकारों को संचालित करनेवाले ज़िम्मेदार और ऊँचे लोग अपने ही अन्दाज़ में प्रकरणों पर बहुत ही मुस्तैदी से पर्दा डालते आये हैं। यही कारण है कि एक अरसे से वह मेडिकल कॉलेज ‘बदनामी की काली चादर’ में लिपटा आ रहा है। सच तो यह है कि उस चादर को अब खींच लेने की आवश्यकता है, ताकि उसका अनावृत रूप सार्वजनिक हो सके, अन्यथा मासूम ‘मारे’ जाते रहेंगे और शासन-प्रशासन बेफ़िक़्र बने रहेंगे।
वैसे तो इस तरह के शासकीय आँकड़े विश्वसनीय नहीं होते; कारण कि ऐसे मामलों में संख्याओं को घटाकर प्रस्तुत किया जाता है, फिर भी प्रतिवर्ष बच्चों के मरने के जो आँकड़े हमें प्राप्त होते हैं, वे कम भयावह नहीं हैं। इस प्रकार वर्ष २०१४ में कुल ५७६ बच्चे, २०१५ में ६६८ तथा २०१६ में ५८७ बच्चे बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराये गये कुल बच्चों में से मरे थे। वर्ष २०१७ के अगस्त-माह के दसदि नों में ही ८० माताओं की गोद सूनी हो चुकी थीं, जिसमें प्रथम दृष्ट्या ‘लिक्विड ऑक्सीजन गैस’ की आपूर्त्ति का न होना बताया गया है। वहीं ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मृत्यु को उत्तरप्रदेश-शासन एक सिरे से झुठलाने की असफल कोशिश करता आ रहा है। राज्य के स्वास्थ्यमन्त्री सिद्धार्थनाथ सिंह का अमानवीय और शोकाकुल परिवारों के असह्य घावों पर ‘नमक’ छिड़कनेवाला यह वक्तव्य ” अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं” उन्हें ‘कठघरे’ में ला खड़ा करता है। यही नहीं, यही मानसिकता चिकित्सा शिक्षामन्त्री आशुतोष टण्डन की रही है और कमोबेश मुख्यमन्त्री की भी। यहीं पर एक स्वाभाविक प्रश्न उठ खड़ा होता है— तो राज्य-शासन यह मानकर हाथ-पर-हाथ धरे रहेगा, अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं, कोई बचाव करने की ज़रूरत नहीं है? यह ऐसा खोखला कथन दायित्वहीनता का परिचायक है। इतना ही नहीं, सिद्धार्थनाथ सिंह अबोध बच्चों की मृत्यु पर गहन संवेदना व्यक्त करने के स्थान पर ‘मृत्यु की वार्षिक रिपोर्ट’ प्रस्तुत करते हुए, आँकड़ेबाज़ी करने में जुट गये और मूल प्रश्न वहीं ठहर कर रह गया— मासूमों की मृत्यु कैसे हुई?
अब रही बात ‘ऑक्सीजन-आपूर्त्ति’ में कमी की, तो आइए! हम इसकी भी पड़ताल करते हैं :—-
वर्तमान में बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज को ऑक्सीजन-आपूर्त्ति करनेवाली एजेंसी ‘पुष्पा सेल्स प्रा० लिमिटेड’ एक अरसे से ऑक्सीजन की आपूर्ति करती आ रही थी, किन्तु चिकित्सालय-प्रबन्धन पर उस एजेंसी के लाखों रुपये के बक़ाया होने के कारण वह एजेंसी ऑक्सीजन-आपूर्त्ति करने में असमर्थ सिद्ध हो रही थी। नियमत: चिकित्सालय पर एजेंसी के १० लाख रुपये से अधिक बक़ाये की राशि होनी चाहिए थी परन्तु बक़ाये की कुल राशि ६८ लाख ६५ हज़ार ५९६ रुपये थी। अपनी इस धनराशि के भुगतान के लिए ‘पुष्पा सेल्स प्रा० लिमिटेड’ की ओर से बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य, गोरखपुर के ज़िलाधिकारी, उत्तरप्रदेश स्वास्थ्य महानिदेशालय, स्वास्थ्य मन्त्रालय, राज्य मुख्य सचिव आदि के पास कई पत्र भेजे गये थे और ध्यानाकर्षणपत्र भी, परन्तु इनमें से किसी ने भी प्रेषित पत्रों का संज्ञान नहीं लिया। इस एजेंसी की प्रबन्धिका मीनू वालिया का कहना है कि पिछले छ: माह से उक्त मेडिकल कॉलेज पर एजेंसी का बकाया धनराशि है। गैस एजेंसी ने यह भी कहा था कि यदि बहुत कठिनाई हो रही हो तो किश्तों में भुगतान कर दिया जाये, परन्तु मेडिकल कॉलेज के रवय्ये में कोई परिवर्त्तन नहीं आया। यहाँ पर गोरखपुर का ज़िलाधिकारी भी दोषी है। वह यदि चाहता तो अपने ‘कोष-नियम २७’ के अन्तर्गत आपात्काल को समझते हुए, ‘शासकीय कोष’ से धनराशि निकालकर एजेंसी का भुगतान कर सकता था, किन्तु उसने नहीं किया। राज्य-मुख्य सचिव, स्वास्थ्य महानिदेशालय, स्वास्थ्य मन्त्रालय, ज़िलाधिकारी (गोरखपुर), निलम्बित किये गये मेडिकल कॉलेज का प्रधानाचार्य डॉ० राजीव मिश्रा और उपप्रधानाचार्य डॉ० कफ़ील ख़ान, डॉ० राजीव मिश्रा, बालरोग-विभाग प्रमुख अनिता भटनागर आदिक की ‘हत्यारी मानसिकता’ को अच्छी तरह से समझा जा सकता है। एजेंसी की ओर से भेजे गये सारे पत्रों के एक-एक शब्द चीख़-चीख़ कर बता रहे हैं कि उक्त सारे विभाग और अधिकारी लगभग ८० बच्चों की मृत्यु के लिए सीधे ज़िम्मेदार हैं। इन सबकी उदासीनता से तंग आकर और अपनी शेष धनराशि के डूबने के भय के कारण गैस एजेंसी ने ऑक्सीजन की आपूर्त्ति पिछले ९ अगस्त को बन्द कर दी थी। ऐसे में, प्रश्न उठता है— ऑक्सीजन-आपूर्त्ति अवरुद्ध होने की सूचना मेडिकल कॉलेज-प्रबन्धन को नहीं थी? ९ अगस्त को उत्तरप्रदेश के मुख्य मन्त्री जब बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज में ‘सी०सी०यू०’ वार्ड का उद्घाटन करने के लिए आये थे और वार्डों का दौरा करते रहे; लगभग तीन घण्टे तक वहाँ के प्रशासन के साथ बैठक करते रहे तब वहाँ के ज़िलाधिकारी और चिकित्सालय-प्रबन्धन को पक्षाघात हो गया था? ऑक्सीजन-आपूर्त्ति बाधित हो चुकी है, इसे मुख्य मन्त्री को क्यों नहीं बताया गया। इतना ही नहीं, जब स्वास्थ्यमन्त्रालय इस बात को स्वीकार कर रहा है कि १ अगस्त को उसे पता चला कि ऑक्सीजन-आपूर्त्ति में किसी भी समय कमी आ सकती थी तब उसने आवश्यक क़दम क्यों नहीं उठाये थे?
प्रधानाचार्य डॉ० राजीव मिश्र का यह दावा कि उसने ऑक्सीजन आपूर्त्ति एजेंसी की शेष धनराशि के भुगतान कराने के लिए सम्बन्धित विभागों को पत्र लिखे थे, परन्तु कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी। यही नहीं, अपने शेष धनराशि के भुगतान के लिए ‘क़ानूनी नोटिस’ भी भेजवायी थी। इसकी भी जाँच करायी जानी चाहिए।
अब मूल विषय पर आता हूँ। उत्तरप्रदेश-शासन का कहना है कि ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं थी और ऑक्सीजन से बच्चों की मृत्यु नहीं हुई है। ऐसे में, मुख्य मन्त्री ने आनन-फानन में नये ऑक्सीजन सिलिण्डरों की व्यवस्था और अवरुद्ध ऑक्सीजन की पुन: आपूर्त्ति क्यों करवायी है और फिर जाँच किस विषय की?
जो छन कर तथ्य हमारे पास आया है, उससे ज़ाहिर हुआ है कि पुष्पा सेल्स प्रा० लिमिटेड को भुगतान न करने के पीछे अधिकारियों को रिश्वत का नहीं दिया जाना है। उक्त एजेंसी एक अधिकारी को एक लाख रुपये और कुछ अन्य अधिकारियों को भी रिश्वत देने की तैयारी कर ली थी और बदले में निम्न स्तरीय ऑक्सीजन की आपूर्त्ति करती थी। यह खेल तो उसी समय से शुरू हो गया है, जिस समय से उक्त एजेंसी को बिना किसी निविदा के आधार पर ऑक्सीजन-आपूर्त्ति के लिए अधिकृत कर लिया गया था? बिना किसी सूचना के पूर्व ऑक्सीजन-आपूर्त्तिकर्त्री एजेंसी की सेवा क्यों समाप्त कर दी गयी? क्या यह सच गोरखपुर के ज़िलाधिकारी से लेकर स्वास्थ्यमन्त्रालय तक के अधिकारी नहीं जानते थे? क्या प्रधानाचार्य डॉ० राजीव मिश्र पाक-साफ़ है?
वर्तमान माह के अगस्त-माह में नवजात शिशु से लेकर बाल तक समुचित उपचार के अभाव में मृत्यु को प्राप्त कर चुके हैं। पिछले ७ अगस्त से अब तक मृतकों की संख्या ८० से अधिक हो चुकी है। अबोध बच्चे कालकवलित हो चुके हैं परन्तु चिकित्सालय-प्रबन्धन विभाग यह बताने के लिए प्रस्तुत नहीं है कि बच्चों की मृत्यु किस अथवा किन कारणों से हुई है। मृतक बच्चों के पारिवारिक सदस्यों का सुस्पष्ट कहना है कि उनके बच्चों की मृत्यु नहीं हुई है, बल्कि हत्या की गयी है। ऐसे में, प्रश्न है, मासूमों की ‘हत्या’के लिए ‘अस्पताल-प्रशासन’ ज़िम्मेदार नहीं है? उनका यह भी आरोप है कि उनके बच्चों का इलाज अनुभवी डॉक्टर न करके, वहाँ ‘डॉक्टरी’ पढ़ रहे विद्यार्थी ही करते हैं और वे भर्ती कराये गये बच्चों के माता-पिता और देखभाल करनेवाले अन्य सदस्यों के साथ अभद्र आचरण करते हैं। इसकी भी जाँच होनी चाहिए। अमानवीयता की पराकाष्ठा तब दिखी जब बाबा राघव दास के मेडिकल कॉलेज की नर्सें मृतक बच्चों के परिवार के सदस्यों को ‘डेथ सर्टिफिकेट’ देकर चले जाने को कहते थे और न जाने पर गार्डों की गुण्डई के बल पर भगाहदेते थे। इसका मतलब यह कि उन्हें अपने बच्चों का चेहरा भी देखने से वंचित रखा गया है! आश्चर्य है कि सब कुछ उत्तरप्रदेश-शासन के संज्ञान में आने के बाद भी शासन की ओर से मृतकों के परिवारवालों को क्षतिपूर्त्ति करने के लिए एक पैसा की धनराशि देने की घोषणा नहीं की गयी है! मरे बच्चों का ‘पोस्ट मॉर्टम’ क्यों नहीं कराया गया है, क्या सरकार के लोग इसका संज्ञान लेंगे? बहरहाल, मुख्यमन्त्री ने इसकी जाँच के आदेश कर दिये हैं। आपके साथ हमें भी ‘जाँच-रिपोर्ट’ की प्रतीक्षा है।