….फिर शिकायत क्यों और किसके लिए?

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

निस्संदेह, बिहार के कुख्यात राजनेता आनन्द मोहन की अनुचित तरीक़े से रिहाई पूरी तरह से ग़लत है; परन्तु इस पर ऐसे राजनेता विरोध कर रहे हैं, जिन्होंने अपने ऊपर लगायी गयीं आपराधिक धाराएँ स्वयं ही हटा ली थीं; ‘बिल्किस बानो’ के अपराधियों को मुक्त करा दिये थे; ‘गोधराकाण्ड’ के दोषियों तथा अपने दल के मन्त्रियों, विधायकों तथा सांसदों को ‘क्लीन चिट’ देते-दिलाते आ रहे हैं।

यही तो राजनीतिक बेशर्मी है :― तुम करो-कराओ तो ‘जय श्री राम’ और यदि उसे ही दूसरा करे-कराये तो ‘जय लंकेश’; तत्काल अँगुलियाँ उठ जाती हैं। ऐसा राजनीतिक दोगलापन आज़ादी के बाद से चला आ रहा है; यह अलग विषय है कि तब इतनी अधिक गन्दगी नहीं थी।
तुम्हारे जंगल मे ‘तुम्हारा जंगलराज’ है और दूसरे के जंगल मे ‘उसका जंगलराज’। ऐसे मे, किसी को भी मिर्ची नहीं लगनी चाहिए।

किसानो को जीप से रौंद दिया गया; बेसहारा नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया-कराया गया; जेल से ज़मानत पर आने के बाद उस लड़की और उसकी मा को बुरी तरह से मारा गया था; उसके घर मे आग लगाकर उसके घर की पाँच और दो माह की बच्ची-बच्चे को जला दिया गया था; परन्तु अफ़्सोस! सरकार चलानेवालों की ज़बान से ‘उफ़्फ़’ तक नहीं निकला। एक अन्य घटना मे मा-बेटी को जलाकर मार डाला गया, फिर जो कुछ हुआ, उसे देशवासी देखते रह गये।

अब तो शुरुआत कर दी गयी है और विविध प्रकार के आपराधिक कृत्यों की पृष्ठभूमि भी तैयार कर ली गयी है। अपने राज मे तुम बलशाली हो तो अत्याचार कर-करा रहे हो; अपने राज मे दूसरा शक्तिमान् है तो वह क़ह्र बरपा रहा है। ऐसे मे, दोनो आपराधिक धरातल पर अपनी-अपनी जगह पर तर्कयुक्त हैं और तर्कपूर्ण भी।

(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २५ अप्रैल, २०२३ ईसवी।)