क्या मानसून सत्र संसदीय गरिमा को बचा पाएगा ?

प्रधान संपादक, इण्डियन वॉयस 24

राघवेन्द्र कुमार “राघव”-


नई दिल्ली के गर्म मौसम में विपक्ष सोमवार से शुरु हाे रहे संसद के मानसून सत्र में चीन के साथ सीमा पर तनाव और कश्मीर की दुर्दशा पर सरकार को परेशान करने को बेताब है । अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों के साथ ही देश के अन्दर हो रहे किसान आंदोलन पर भी विपक्ष सरकार को घेरने की तैयारी में है । कश्मीर में आतंकवाद की बढ़ती घटनाओं और अमरनाथ यात्रियों पर हुये हमले को लेकर आम जनमानस के क्रोध को भी विपक्ष द्वारा अस्त्र के रूम में देखा जा रहा है । वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का मुद्दा भी संसद में गतिरोध पैदा कर सकता है ।

इन मुद्दों के अलावा अन्य भी कई मामलों पर राजनीतिक गलियारों से संसद तक सुगबुगाहट महसूस की जा सकती है । विपक्षी दलों सैसे राजद के नेताओं और उनके परिवार के सदस्यों के ठिकानों पर भ्रष्टाचार को लेकर प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई और आयकर विभाग के द्वारा मारे गए छापों पर भी तीखी बहस की उम्मीद है । कट्टरता को लेकर गौ रक्षा के नाम पर कथित गोमांससेवी और गोकातिलों की पीट – पीट कर की गयी हत्याओं पर भी विपक्ष के हंगामा खड़ा करने के पूरे आसार हैं । हालांकि इन महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर एक और मजेदार तथ्य यह है कि इन समस्याओं में से आधे भी ज्यादा के लिए जिम्मेदार विपक्ष है । बात चाहें अलगाववादियों के समर्थन की हो या फिर देश में बढ़ रही साम्प्रदायिकता की हो, बहस के स्तर पर विपक्ष के हर जगह हाशिए पर ही दिखाई देने के आसार हैं । देश इस उम्मीद से संसद सत्र की राह देख रहा है कि शायद इस बार गन्दी राजनीति की जगह शालीन, परिपक्व और देशहित की राजनीति की बानगी देखने को मिले । साथ ही देश के समक्ष खड़ी समस्याओं के उन्मूलन के लिए पक्ष और विपक्ष बिना किसी पूर्वाग्रह के साथ आकर कानूनों का निर्माण कर देश को सुदृढ़ बनाएंगे ।