क्या किसानी मज़बूरी ही बनी रहेगी ?

अन्न कॉरपोरेट जगत की बातों से नहीं उगता और न ही किसी दफ्तर में ही उगता है

राघवेन्द्र कुमार “राघव”
प्रधान संपादक,             इण्डियन वॉयस 24

राघवेन्द्र कुमार “राघव”-


जो कभी भारतीय अर्थव्यवस्था की धुरी हुआ करते थे, आज स्वयं ही हाशिए पर चले गए हैं । हम बात कर रहे हैं किसानों की । वह किसान जो हाड़ तोड़ मेहनत करके हमारा पेट भरते हैं । चाहें जितनी उन्नति हो जाए, चाहें जितना हम धन कमा लें लेकिन पेट भरने के लिए हमें अन्न की ही जरूरत होती है । अन्न कॉरपोरेट जगत की बातों से नहीं उगता और न ही किसी दफ्तर में ही उगता है । अन्न पैदा करने के लिए किसानों को धूप में अपनी हड्डियां सुखानी पड़ती हैं । बादलों की मार सहनी पड़ती है । ठण्ड का प्रकोप झेलना होता है । इतना होने के बाद भी प्राकृतिक और मानव निर्मित खतरों का सदैव भय बना रहता है । पता नहीं कब ओले फसल चौपट कर दें, जाने कब कोई कीट फसलों को चट कर जाए और कब आग सब खाक कर जाए ।

किसान की नियति में सुख नहीं है । फसल की पैदावार के बाद भी उसे कीमत अच्छी मिले यह आवश्यक नहीं है । सरकारें विदेशों से दोगुनी कीमत पर खाद्यान्न क्रय कर लेंगी लेकिन उसी कीमत पर अपने किसानों की उत्पादित फसलें नहीं खरेदेंगी । साल दर साल सरकारें अपने नौकरों का वेतन बढ़ाएगी लेकिन किसानों की मेहनत को हराम में ही हड़पने को प्रतिबद्ध रहेंगी । ऐसी स्थिति में कौन बेवकूफ किसानी करने का मन बनाएगा । मजदूरों की तो किसानी मजबूरी है । खैर पिछली सरकारों के उलट उत्तर प्रदेश की वर्तमान योगी सरकार किसानों को लेकर संजीदा नजर आ रही है । योगी सरकार का कहना है कि किसानों की समृद्धि ही हमारा लक्ष्य है । सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ  किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रयासरत हैं । देश की प्रखर राष्ट्रवादी सरकार के प्रधान नरेन्द्र मोदी के सानिध्य में योगी सरकार किसानों के लिए फसलों की ऐसे तकनीक विकसित करा रही है जो रोगप्रतिरोधक होगी । कृषि वैज्ञानिक लम्बे अरसे से इस पर काम कर रहे हैं । अब उन्हें इसमें काफी हद तक सफलता भी मिली है । किसानों की समस्याओं के त्वरित निराकरण के लिए सरकार किसान कॉल सेन्टर से किसानों को जोड़ने का खाका लगभग तैयार है । सरकार सूबे के 33 लाख किसानों को एम-किसान पोर्टल से जोड़ने जा रही है, जहाँ से किसानों को आधुनिक व व्यवसायिक खेती के लिए जरूरी जानकारी प्राप्त होती रहेगी । किसानों ने एक बार फिर किसी सरकार से उम्मीद लगायी है कि वह उसके जीवन स्तर को सुधारने और ऊपर उठाने में उसकी मददगार बनेगी । आज तक किसान को राजनीति में अस्पृश्य और मजबूर ही समझा गया है । “किसान जाएगा कहाँ” की ही राजनीति की गयी है ।