भारत को शर्मसार करता मणिपुर का चीरहरण!..?

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

‘इण्डिया टु-डे’ की पत्रकार मणिपुर के मुख्यमन्त्री एन० बिरेन सिंह से प्रश्न करती है, “४ मई की घटना है; १८ मई को एफ० आइ० आर० दर्ज़ होती है। आपके इलाक़े मे इतनी बड़ी घटना हो जाती है और आपको पता तक नहीं चला?”

मुख्यमन्त्री उत्तर देता है, “यहाँ इस तरह की हिंसा रोज़ाना हो रही है; सैकड़ों आदमी मर चुके हैं और इसी तरह की १,००० (एक हज़ार) एफ० आइ० आर० यहाँ हैं। आपको पता नहीं कि यहाँ पर क्या हो रहा है।”

वह पत्रकार पुन: प्रश्न करती है, “सर! आपके यहाँ औरतों को नंगा करके घुमाया जा रहा है; वीडियो बनायी जा रही है; गैंग रेप हो रहा है।”

मुख्यमन्त्री टिप्पणी करता है, “वीडियो कल ही लीक हुई है; कल ही पता चला है।”

इस पर महिला का यह प्रश्न आक्रामक दिखता है, “आपको एफ० आइ० आर० के बारे मे इससे पहले जानकारी नहीं थी? वीडियो लीक होने से पहले कोई जानकारी नहीं थी?

मुख्यमन्त्री जवाब मे कहता है, “इस तरह की सैकड़ों एफ० आइ० आर० हैं। यहाँ पर ऐसे केस रोज़ाना हो रहे हैं।”

वह पत्रकार फिर प्रश्न करती है,”आपके यहाँ पर महिलाओं को नंगा करके घुमाया जाता है; गैंग रेप किया जाता है और मुख्यमन्त्री को पता ही नहीं चलता है?”
मुख्यमन्त्री उत्तर देता है, “आपने जो आरोप लगाये हैं, उसे नहीं सुनने हैं। जो यहाँ के ज़मीनी हालात हैं, वह देखिए। यहाँ पर इसी तरह के सैकड़ों हुए हैं, इसीलिए यहाँ के इण्टरनेट बन्द किया हुआ है। एक केस आ गया तो आपलोग ऐसे कर रहे हैं। मै इसकी निन्दा करता हूँ। एक आदमी पकड़ लिया है; बाकी को भी पकड़ेंगे।”

इतना कहने के बाद उस मुख्यमन्त्री ने फ़ोन काट दिया था।

‘इण्डिया टुडे’ की पत्रकार को मणिपुर के मुख्यमन्त्री ने जो उत्तर दिये हैं, उनसे सुस्पष्ट हो जाता है कि भारतीय जनता पार्टी-शासित मणिपुर राज्य मे महिलाओं को नंगा करके उन्हें घुमाना, उनके गुप्तांगों के साथ कुकृत्य करना तथा उन महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म करना प्रतिदिन की घटना है और वहाँ का सरकारी तन्त्र इससे वाक़िफ़ है। इतना ही नहीं, कथित मुख्यमन्त्री का पुरुषार्थ क्षीण हो चुका है; उसका शासन-प्रशासन पर से प्रभाव जाता हुआ दिख रहा है?

इतना निश्चित हो चुका है कि वहाँ का पुलिसतन्त्र निष्क्रिय है तथा वहाँ के आतंकियों के हाथ की कठपुतली बनकर रह गया है। यही कारण है कि आरोपितों के विरुद्ध ‘ज़ीरो एफ० आइ० आर०’ दर्ज़ की गयी थी, जो कि प्रभावकारी सिद्ध नहीं होता।

भारत की सेना का वह पेंशनभोगी सूबेदार, जिसने श्रीलंका और करगिल-युद्ध मे देश की रक्षा की थी, वह अपने घर, अपनी पत्नी तथा गाँववालों की रक्षा न कर सका, जिसका उसे बेहद अफ़्सोस (‘अफ़सोस’ अशुद्ध है।) रहा है।

उस भूतपूर्व सूबेदार ने बताया, “ये लोग जो हैं, हम लोग शुरू-शुरू मे इकट्ठा पकड़े गये थे; उसी जगह से अलग-अलग से लेकर गये थे हम लोग; बीच मे जो औरत लोग हैं, दो-तीन औरत लोग हैं या अलग-अलग से लेकर गया, जो मेरी बीवी है, उसका कपड़ा उतार दिया। उस टाइम भाई लोग और उसके पिता उस लड़की को बचाने के लिए आये तो उन्हें भी जान से मार दिया। ऐसा इतना दु:ख लगा है; कभी सपने मे भी सोचा नहीं, ऐसा होगा; लेकिन बहुत दु:ख के साथ कहना पड़ा, ऐसे असुर-जैसा बदला, जो कभी सोचा भी नहीं था, ऐसा हमला जान पर हमला हुआ। मेरी पत्नी है; एक लड़की है और एक औरत जो है, वो भी लेकर गये। इतना जानकारी नहीं हो पाया और जो एक लड़की, भाई, बेटा को जान से मार दिया है। मेरी पत्नी है और तीन औरत ही था। ये लोग जो है, एक बच्चा था तो उसने उसका वायरल नहीं किया। उसके कपड़े वगैरह को फाड़े हैं तो; लेकिन क्या हरकत किया, ये पता नहीं है।

आगे बताया, “लड़की लोग पर ऐसे कपड़े उतारा, जो कि जानवर की तरह; बहुत दु:ख हुआ। एक लेडीज से जहाँ जेण्ट्स ज्यादा हैं, इनके बीच मे कपड़ा उतारकर उनको ड्रामा के तौर पर घेर रहा है। इनके रीति-रिवाज मे जानवर भी नहीं करता होगा। इनके साथ रहने के लिए तो जीना मुश्किल हो जायेगा, इसलिए हमलोग अलग-अलग से रहने के लिए सरकार सेल्फ डिक्लेअर करके फैसला करना चाहिए।”

इस टूटी-फूटी हिन्दी मे की गयी स्वीकारोक्ति मे कितनी विवशतापूर्ण वेदना है।

यद्यपि घटना ४ मई, २०२३ ई० को हिंसाग्रस्त राज्य मणिपुर की राजधानी इम्फाल से लगभग ३५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित ‘कांगपोकपी’ मे घटी थी, जिसका वीडियो पिछली १९ जुलाई को सार्वजनिक कर दिया गया था। उसके बाद उच्चतम न्यायालय और संसद मे उसकी प्रतिक्रिया होते ही, भारत का वह प्रधानमन्त्री, जो छिहत्तर दिनो तक अदृश्य बना रहा, अचानक प्रकट होकर अपने मायावी रूप और कथन से संवेदनारस टपकाने लगा, “मेरा ऋदय (‘हृदय’ शुद्ध है।) पीड़ा और क्रोध से भरा हुआ है। मणिपुर की जो घटना सामने आयी है, वह किसी भी सभ्य समाज को शर्मशार करनेवाली है। १४० करोड़ देशवासियों को शर्मसार होना पड़ रहा है।”

कोई भारत के इस प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी से पूछे– तुम्हारा मुख्यमन्त्री तो बता रहा है कि मणिपुर मे इस तरह की घटना रोज़ाना होती है और तुम्हें इसकी भी जानकारी से महरूम रखा गया; तुम्हारा गृहमन्त्रालय जानकारी जुटाने मे विफल कैसे रहा? तुम संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, सऊदी अरब आदिक देशों मे भ्रमण करते रहे। तुम्हें फ्रांस की धरती से ‘चन्द्रयान– तीन’ छोड़े जाने की आहट सुनायी देती रही, जैसा कि तुमने वहाँ के भारतवंशियों के बीच मे वाहवाही लूटते हुए बताया था; परन्तु मणिपुर मे चीरहरण और सामूहिक बलात्कार की शिकार महिलाओं का क्रन्दन नहीं सुनायी पड़ा था?
नरेन्द्र मोदी! देशवासियों को कबतक ठगते रहोगे? वहाँ अपने तथाकथित बुल्डोजर चलवाने का साहस नहीं हो रहा है वा फिर ‘सत्ता की राजनीति’ कर रहे हो?

वीडियो के सार्वजनिक होने के बाद पीड़ितों मे से एक ने बताया है,"हमे पुलिस ने भीड़ के पास छोड़ दिया था। ४ मई को हथियार लेकर ८००-१००० लोग का समूह उनके गाँव मे घुस गया और लूटपाट और आगजनी शुरू कर दी, जिसके बाद पाँच सदस्य :– तीन महिलाएँ और परिवार के दो सदस्य जंगल की ओर भाग गये थे।" महिलाओं ने शिकायत करते हुए कहा, "पुलिस ने हमे बचा लिया था और थाने ले जा रही थी; लेकिन रास्ते मे उन्हें भीड़ ने रोक लिया था और थाने से करीब दो किलोमीटर दूर पुलिस-हिरासत से छिन लिया था।'' महिलाओं ने बाद मे यह भी आरोप लगाया कि पुलिस ने हमे घर से उठाया और गाँव से थोड़ी दूर ले जाकर भीड़ के साथ सड़क पर छोड़ दिया था। अपनी शिकायत मे महिलाओं ने बताया है कि छोटी महिला के साथ दिनदहाड़े सामूहिक बलात्कार किया गया था। सार्वजनिक किये वीडियो मे दो महिलाओं-सहित ५० वर्षीया को भी निर्वस्त्र किया गया था। आरोप यह भी है कि सामूहिक बलात्कार की शिकार २० वर्षीया युवती के पिता और भाई की भी हत्या कर दी गयी थी।

उल्लेखनीय है कि मणिपुर मे ३ मई, २०२३ ई० से लगातार इम्फाल-घाटी मे रह रहे बहुसंख्यक 'मेइती-समुदाय' और पर्वतीय क्षेत्रों मे रहनेवाले जनजातीय 'कूकी-समुदाय' के बीच जातीय झड़पें होती आ रही हैं। वहाँ परिव्याप्त हिंसा मे अबतक लगभग १७५ लोग मारे जा चुके हैं; लगभग ६,००० हिंसा की घटनाएँ दर्ज़ हैं; ५,००० से अधिक आगज़नी की घटनाएँ घटी हैं; ६०,००० से अधिक लोग बेघर हो चुके हैं तथा ६,७४५ उपद्रवियों की गिरिफ़्तारी की जा चुकी है।

इन बोलते आँकड़ों से सुस्पष्ट हो चुका है कि यह घटना समान्य नहीं है। हम यदि कहें कि इस घटना के पीछे सत्तारूढ़ राजनैतिक दल का भी हाथ है तो इसे ग़लत नहीं ठहराया जा सकता; क्योंकि घटनाक्रम से सुस्पष्ट हो जाता है कि राज्य और केन्द्र की सरकारों को आतंकियों के साथ निबटने की इच्छाशक्ति मर चुकी है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २२ जुलाई, २०२३ ईसवी।)