हे प्रकृति! अब करो संहार

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

समय आया, कर विचार।
देश की जनता है लाचार।
शब्दबाण से बेधो इतना,
राजनीति बदले आचार।
खद्दर शर्म से पानी-पानी,
चहुँ ओर दुर्गुण का सार।
मर्दित मान सभी का देखो!
धरती पर दिखते हैं भार।
नेताओं से त्रस्त है जनता,
हे प्रकृति! अब करो संहार।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २२ जुलाई, २०२० ईसवी)