आवर्त्तन और दरार : संविधान है कह रहा, लाओ! घर में सौत

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

एक :
कैसा यह भगवान् है, चोर-चमारी भक्ति।
मन्दिर में मूरत दिखे, उड़न-छू हुई शक्ति।।
दो :
पट्टी बाँधे आँख में, देश जगाता चोर।
भक्त माल सब ले गये, कहीं नहीं अब शोर।।
तीन :
अजब-ग़ज़ब के लोग हैं, शर्म-हया से दूर।
सेंध लगी है देश में, लोग बने हैं सूर।।
चार :
लोकतन्त्र गूँगा बना, ‘अच्छे दिन’ की मौत।
संविधान अब कह रहा, लाओ! घर में सौत।।
पाँच :
दुनिया है उम्मीद पे, कहते ‘पृथ्वीनाथ’।
चीर अँधेरे को बढ़ो, दीप बढ़ाओ हाथ।।
(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २ अक्तूबर, २०१९ ईसवी)