ज़रा साज़ छेड़ो, तराने उठेंगे,

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


ज़रा साज़ छेड़ो, तराने उठेंगे,
शम्अ जलाओ, परवाने बढ़ेंगे।
चिलमन को मत उठाओ अभी,
बहुत सारे दुश्मन, पुराने मिलेंगे।
मन को दबा, यों बैठे हो क्यों?
अभी दिल जवाँ है, दीवाने मिलेंगे।
कह दो, हसीं वक़्त आया है अब,
आगे मुसल्सल बहाने मिलेंगे।
रंगे हुस्न लगता है रंगे गुलाब,
रंगीनिए नज़र में जनाने मिलेंगे।
(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; ५ जनवरी, २०१८ ई०)