आवाज़ उठानी ही होगी सरताज बदलने ही होंगे

मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’ लखनऊ (युवा गीतकार)


अल्फ़ाज़ बदलने चाहिए जज़्बात बदलने की ख़ातिर |
हर सोच बदलनी चाहिए हालात बदलने की ख़ातिर ||
अग़लात कुचलने हों अगर अस्हाब बदलने ही होंगे |
आदाब बदलने चाहिए इस्बात बदलने की ख़ातिर || (1)

अस्बाब बदलने ही होंगे अंदाज़ बदलने ही होंगे |
अंजाम बदलने हों ग़र तो आगाज़ बदलने ही होंगे ||
इस दौर अभी भी ग़र ख़ुद को आज़ाद बशर कहलाना है |
आवाज़ उठानी ही होगी सरताज बदलने ही होंगे || (2)

आग उगलती स्याही होगी जब अपने अखबारों में |
रूह निकलने का डर होगा हम सबके अग्यारों में ||
दाग़ सभी मिट जाएंगे ‘मन’ होगी घर-घर ख़ुशहाली |
राज़ नहीं कुछ भी होगा जब सत्ता के गलियारों में || (3)