करणी सेना के गुण्डों का इलाज करना अब बहुत ज़रूरी

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


देश का नेतृत्व जब न्यस्त स्वार्थों के कारण राष्ट्रहित की अनदेखी करता है तब उसके ‘सत्ता’ में बने रहने के औचित्य पर सीधा प्रश्न आ खड़ा होता है; उसका अस्तित्व निराधार-सा दिखने लगता है; उसकी राष्ट्रीय आस्था स्वत: संशय-सीमा के अन्तर्गत दिखने लगती है। उसके द्वारा लोकतन्त्रीय मर्यादा का शीलहरण होते दिखने लगता है; वह कितना ख़ुदगर्ज़ है, इसका सुस्पष्ट चित्र सामने आने लगता है तथा उसे धिक्कारते हुए, देश की जनता आक्रोशित होकर चिल्ला पड़ती है : हा धिक्-हा धिक्!
केन्द्र और राज्य की सरकारें अपने-अपने कानों में ठेपियाँ लगा रखी हैं और अघोषित सूरदास बन चुकी हैं। पुलिस-प्रशासन भी ‘दिव्यांग’ दिख रहा है। इन दिनों हर पल कर्णी सेना के गुण्डे समाचार-चैनलों पर देश की सम्पूर्ण गतिविधियों को अवरुद्ध करने के लिए देश के नेतृत्व को खुली चुनौती दे रहे हैं; वे समूचे देश में अराजकता फैलाने के लिए ‘ठान’ चुके हैं परन्तु हमारे देश का नेतृत्व ‘तरह-तरह’ के जश्न का आयोजन कर, स्वयं को ‘स्वयम्भू चक्रवर्ती सम्राट्’ के रूप में प्रदर्शित करने में लगा हुआ है। देश की आन्तरिक विधि-व्यवस्था के प्रति प्रधान मन्त्री की किसी भी प्रकार की चिन्ता नहीं दिख रही है, तभी तो रेडियो पर ‘मन की बात’ सुनाने में निपुण और अतिरिक्त महत्त्वाकांक्षी प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी ‘मौनी बाबा’ बने हुए हैं। इससे ज़ाहिर होता है कि भावना-स्तर पर ख़ुद को ‘प्रधान जनसेवक’ कहनेवाले और संवैधानिक रूप में देश का प्रधान मन्त्री बनकर, ‘भारतभाग्य-विधाता’ के रूप में चरित्र-चाल-चेहरा दिखाने में लगे हुए हैं; देश में व्याप्त असन्तोष के प्रति उनकी अभी तक कहीं-कोई चिन्ता नहीं दिखती। ‘नोटबन्दी’ की घोषणा करते समय शान के साथ ‘राष्ट्र के नाम सन्देश’ देते दिखे थे और अब, जब देश में फ़िल्म ‘पद्मावती’ दिखाये जाने के विरोध में कतिपय विध्वंसक तत्त्वों-द्वारा “डंके की चोट पर” उग्रता की भीषण आग लगाने की चेतावनी दी गयी है और उसकी शुरुआत हो भी चुकी है, देश की सरकार मौन हो गयी है, बार-बार धिक्कार है। यही कारण है कि कर्णी सेना के उग्रवादी आचरण के आगे देश का नेतृत्व नतमस्तक है। इस समय जनसामान्य को आतंक के साये में लाने के लिए कर्णी सेना के आतंकी तत्पर हो चुके हैं और सरकार ‘सिफ़लिस के रोगी’ जैसा दिख रही है। इतना ही नहीं, उच्चतम न्यायालय-द्वारा नकारा ठहराया गया हरियाणा का मुख्य मन्त्री कह रहा है : हम फ़िल्म-प्रदर्शन के विरोध में न्यायालय में पुनर्विचार के लिए जायेंगे। इसे सीधे तौर पर ‘वोट बैंक’ के रूप में देखा जाना पूर्णत: तर्कसंगत है। गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार आदिक के मुख्य मन्त्री पुन: प्रत्यावेदन और समीक्षा कराने की बात कर रहे हैं।
ऐसा लगता है, मानो आसन्न भा०ज०पा०-शासित-समर्थित राज्यों : गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार आदिक के विधानसभा-चुनाव-परिणामों की गम्भीरता को समझते हुए, केन्द्र और राज्य-सरकारें आत्मसमर्पण की मुद्रा में दिख रही हों। यही कारण है कि आज गुजरात के मेहसाणा में फ़िल्म और उच्चतम न्यायालय के निर्णय के विरोध करनेवालों ने बसें जला दी हैं और गुजरात-सरकार उन आतंकियों के कारनामों को मन्त्रमुग्ध होकर देख रही है। मुझे नहीं मालूम, ‘मेरी सरकार’-‘मेरी सरकार’ का मृत्युंजय जाप’ करनेवाले प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी और अनेक राज्यों, विशेषत: राजस्थान की मुख्य मन्त्री वसुन्धरा राजे कर्णी सेना की चुनौती को कितनी गम्भीरता से ले रही हैं। आश्चर्य का विषय है, देश के राष्ट्रपति भी मौन साधे हुए हैं! आज जब कर्णी सेना के आतंकियों की विस्फोटक गतिविधियों का परिणाम और प्रभाव समूचे देश में देखा जा रहा है तब राष्ट्र के प्रथम नागरिक और राष्ट्र के शीर्षस्थ वैधानिक पदधारक के रूप में उनका दायित्व और गम्भीर हो जाता है, क्योंकि अब प्रधान मन्त्री का पद विशुद्ध राजनीतिक और एक दलीय हो चुका है। ऐसे में, उससे हम ‘राष्ट्रभक्ति’ की उम्मीद कर भी नहीं सकते।
शीर्षस्थ न्यायालय उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र ने ‘अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता और ऐतिहासिक साक्ष्यों’ के आधार पर आरोपी और आरोपित पक्षों के तथ्यों-तर्कों को गम्भीरतापूर्वक सुनते-समझते हुए, फ़िल्म ‘पद्मावती’ को ‘पद्मावत’ के नाम से प्रदर्शित करने की अनुमति, कतिपय संशोधनों के साथ दे दी है। निर्माता-निर्देशक संजय लीला भंसाली ने फ़िल्म ‘पद्मावत’ को आगामी २५ जनवरी से दिखाने का निर्णय किया है।
राजस्थान कर्णी सेना का लम्पट अध्यक्ष और जनद्रोही नेता महीप सिंह मकराना को ‘राष्ट्रद्रोही’ क्यों नहीं घोषित किया जाता? वह कह रहा है, “मैं हर एक रेजिमेंट क्षत्रिय रेजिमेंट, सिक्ख रेजिमेंट के सैनिकों से कहता हूँ कि वे अपने मेस का बहिष्कार करें। एक दिन के लिए अपना शस्त्र नीचे करें।”
यह कथन तो नियमत: ‘राष्ट्रद्रोह’ है। यह तो साफ़ तौर पर देश की सेना को भड़का रहा है। क्या राजस्थान-सरकार को दिख नहीं रहा है? राजस्थान की सरकार ‘मोदी चालीसा’ पढ़ रही है क्या? यहाँ स्पष्टत: राजस्थान की मुख्य मन्त्री वसुन्धरा राजे सत्ता की राजनीति करती हुई दिख रही है, अन्यथा वह देश के सेना रेजिमेण्टों को उग्रवादी महीप सिंह मकराना-द्वारा भड़काने के आरोप में तत्काल ‘देशद्रोही’ के रूप में जेल के अन्दर करवा देती।
सबसे घातक विषय यह है कि महीप सिंह मकराना बार-बार हमारे देश के सैनिकों को भड़का रहा है।
सारे सन्दर्भों को समझकर ऐसा लगता है, मानो गुजरात-विधानसभा-चुनाव में “भारत माता की जय” के उद्घोष की पहल करनेवाले नरेन्द्र मोदी की राष्ट्रवादिता को कर्णी सेना के अराजक तत्त्वों ने बन्धक बना लिया है।
विचारणीय है कि गृह-मन्त्रालय के मुखिया राजनाथ सिंह ने भी अपनी चुप्पी साध रखी है। क्या उन्हें देश को कर्णी सेना के हिंसक खेल दिखाने का शौक है? यदि राजनाथ सिंह ‘त्वरित कार्रवाई’ करने का आदेश ‘अर्द्ध सैन्य सुरक्षा बल’ को नहीं करते तो उन पर ‘क्षत्रिय’ होने के कारण कार्रवाई न करने का आरोप प्रतिपक्षी लगाने से पीछे नहीं रहेगा, इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
फ़िल्म-निर्माता-निर्देशक संजय लीला भंसाली ने उक्त फ़िल्म को कर्णी सेना के महिला-पुरुषों को दिखाया था; सम्पादित रूप में दिखाने के लिए निमन्त्रित भी कर रहे हैं, उसके बाद भी धमकियाँ दी जा रही हैं। ‘सेंसर बोर्ड’ के अध्यक्ष प्रसून वाजपेयी को जान से मारने की धमकी दी जा रही है।
कर्णी सेना के नेता लोकेन्द्र सिंह जिस तरह से बार-बार आग उगल रहा है और ‘जनता कर्फ्यू’ लगाने की बात कर रहा है, वह कितना घातक है, इसका एहसास देश की सरकार को तब होगा जब उक्त गुण्डों और लम्पटों की बुद्धिहीनता के कारण सारा देश जल रहा होगा।
आज जो देश की शान्ति-सुरक्षा को चुनौती दे रहे हैं, उन पर गम्भीर धाराएँ लगाकर उन्हें बन्दी बनाने से पुलिस-प्रशासन पीछे क्यों हट रहा है।
अब स्पष्ट होने लगा है, “विनाशकाले विपरीत बुद्धि।”