बहुत उत्साह , उम्मीद ,इच्छाएँ हैं इनकी आँखों में,
बस एक बार इनकी आँखों में झांक कर तो देखो ।
आकाश से भी ऊँचे उड़ सकते हैं मेरे ये बच्चे ,
बस एक बार इनके हौसलों में पंख लगाकर तो देखो ॥
जब हम सरकारी स्कूल या कॉलेज में पढ़े हों या एक अच्छी रोड पर गाडी से चलते हैं या कभी किसी ट्रेन से चलते हैं या जब गैस के सब्सिडी का पैसा हमारे खाते में आता है या चाहे हम रियायती दर पर बिजली को पाते है इन सबमें सरकारी पैसा खर्च होता है और सरकार के पास यह पैसा आसमान से किसी बारिस के द्वारा नहीं आता ,सरकार के पास यह पैसा आने में देश के लोगों के द्वारा दिए गए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर का अहम् रोल है , कोई गरीब से गरीब सच कहूँ तो कोई भिक्षा मांगने वाला व्यक्ति भी जब किसी बिस्कुट के पैकेट को या किसी अपने कटोरे को खरीदता है तो वह सरकार को कर देता है और सरकार वही कर से हमें सुविधा ,शिक्षा उपलब्ध कराती है |
यानि कि हमें अप्रत्यक्ष रूप से GATE स्कॉलरशिप से लेकर ,सरकारी कॉलेज में कम ट्यूशन फी एवं बस,रेल आदि को उपलध कराने में देश के गरीब से गरीब का अहम् योगदान है |सच कहूँ हम उनके उपकारों पर जी रहे हैं जिसने आजतक विकास और जीवन स्तर शब्द को भी शायद ही कभी सुना हो, तो क्या जिसने हमे निःस्वार्थ भाव से पढाया –लिखाया , जो अपने मेहनत के पैसे से हमे सुख –सुविधाएँ देता है,उसे क्या हम यूँ ही पिछड़ा छोड़ विकास पथ पर आगे बढ़ जाएँ ?नहीं ऐसा करना ही भ्रष्टाचार और पशुता है |छुट्टी के दिन अपने आस –पास स्थित कमजोरो के साथ समय बिताएँ उन्हें उनके अधिकारों ,सुविधाओं से उनको अवगत कराएं उनके बच्चों को पढाई से जोड़े,उन बच्चों को समझाएं वह भी गाडी में चलने वाला साहब बन सकता है , वह भी टीवी में दिखने वाला आदमी बन सकता है , अखबार में फूल माला के साथ उसका भी फोटो आ सकता है बशर्ते उसको रोज स्कूल जाकर अपने मास्टर की बात को मनानी होगी ,वो जो सब कहें वो करना होगा |
इसी क्रम में छत्तीसगढ़ में अपने कुछ ट्राइब बच्चों के साथ आजकल जैसा रविवार बिता रहा हूँ जीवन में शायद ही कभी ऐसा रविवार कभी बिताया था | बहुत उत्साह ,उम्मीद ,इच्छाएँ हैं इनकी आँखों में, बस एक बार इनकी आँखों में झांक कर तो देखो ; आकाश से भी ऊँचे उड़ सकते हैं मेरे ये बच्चे , बस एक बार इनके हौसलों में पंख लगाकर तो देखो ||