शिक्षा की दिव्यता शिक्षक से है

राघवेन्द्र कुमार "राघव" प्रधान संपादक, इण्डियन वॉयस 24

शिक्षक राष्ट्र का निर्माता होता है। भारत मे शिक्षकों का स्थान सदैव सर्वोच्च रहा है। सनातन धर्म में शिक्षक या गुरु को ईश्वर से भी बड़ा स्वीकार किया गया है। भगवद्गीता मे भगवान श्रीकृष्ण स्वयं को गुरु के रूप मे प्रदर्शित करते हैं। गुरु वह है जो शिष्य को अन्धकार के गर्त से निकालकर प्रकाशित समाज मे लाकर खड़ा कर देता है।

आधुनिक काल मे शिक्षा व्यापार बन गयी है लेकिन भारतीय मूल्यों के अनुसार शिक्षा का क्रय या विक्रय नहीं किया जाना चाहिए। ज्ञान पर सभी का समान अधिकार है अतः बिना जाति और धर्म के ऊँच-नीच का विचार किये बिना पात्र को ज्ञान देना ही चाहिये। किसी भी समाज की उन्नति का पैमाना वहाँ की शिक्षित आबादी होती है। शिक्षा सभी सुखों का आलम्बन है। शिक्षा से सब कुछ पाया जा सकता है। शिक्षा ही मोक्ष का कारण भी है। शिक्षा की दिव्यता शिक्षक से है अतः शिक्षक का सदैव सम्मान होना चाहिए।

In English—

A teacher is the creator of a nation. In India, the position of teachers has always been revered. In Hinduism, a teacher or guru is considered even greater than God. In the Bhagavad Gita, Lord Krishna himself appears as a guru. A guru is the one who brings a student out of the darkness and into the light of society.

In modern times, education has become a business, but according to Indian values, education should not be bought or sold. Knowledge is the equal right of all, and therefore, knowledge should be imparted without considering caste or religion. The progress of any society is measured by its educated population.

Education is the foundation of all happiness. Everything can be achieved through education, and education is also the path to salvation. The divine quality of education is attributed to the teacher, so teachers should always be respected.”