● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
आर्थिक विषमता तथा आतंकवाद-सहित कई गम्भीर विषयों से जूझ रहे पाकिस्तान मे कल (८ फ़रवरी) आम चुनाव होनेवाले हैं तथा सभी महारथियों ने अपनी-अपनी कमर कस ली है। हर बार की तरह इस बार भी पाकिस्तान मे नवाज़ शरीफ़, इमरान ख़ान तथा बिलावल भुट्टो ज़रदारी की पार्टी मुक़ाबले मे दिख रही हैं। यहाँ यह ग़ौर करने-लायक़ है कि अपनी पार्टी का नेतृत्व कर रहे इमरान ख़ान इन दिनो कारागार मे क़ैद हैं तथा नवाज़ शरीफ़ लन्दन से पाकिस्तान लौट चुके हैं। नवाज़ की यह वापसी लगभग चार वर्षों-बाद हुई है।
पाकिस्तान मे आम चुनाव कराने से कुछ माह-पूर्व वहाँ प्रमुख विपक्षी दलों, विशेषत: इमरान ख़ान की पार्टी के नेताओं और समर्थकों के साथ जिस तरह का घिनौना व्यवहार वहाँ की फ़ौजी हुक़ूमत करती आ रही है और उसे चुनाव लड़ने से वंचित रखने के लिए जिस तरह के हथकण्डे अपनाती आ रही है, उसे समझकर भारत मे सत्तापक्ष की ओर से जिस तरह से प्रमुख विपक्षी दलों के शीर्षस्थ नेताओं, विशेषत: ‘भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस’ के प्रमुख नेता राहुल गांधी पर अवैध दोषारोपण और उनके महागठबन्धन ‘इण्डिया’ मे शामिल दलों के प्रमुख नेताओं पर ई० डी०-अधिकारियों-द्वारा गिरिफ़्तार कर कारागार मे डलवा दिया जा रहा है, ठीक उसी तरह से पाकिस्तानी फ़ौजी हुकूमत के दबाव और इशारे पर वहाँ के प्रमुख विपक्षी राजनेताओं के साथ व्यवहार किया जा रहा है। इस प्रकार से भारत की ही तरह से पाकिस्तान मे भी राजनीति के गिरते स्तर को समझा जा सकता है।
‘पाकिस्तान मुस्लिम लीग्– नवाज़’ (पी० एम० एल०– एन०) दल के प्रमुख और पाकिस्तान के तीन बार प्रधानमन्त्री रहे ७४ वर्षीय पूर्व-प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ़ का साथ दे रही पाकिस्तानी फ़ौज नहीं चाहती कि नवाज़ के अलावा कोई और सत्ता की बाग़डोर को सँभाले। यही कारण है कि पाँच सदस्यीय पाकिस्तान के निर्वाचन-आयोग की पीठ ने इमरान ख़ान की पार्टी ‘पाकिस्तान तहरीक़-ए इंसाफ़’ (पी० टी० आइ०) का ऐतिहासिक चुनाव-चिह्न ‘बैट’ (बल्ला) छीन लेने का निर्णय सुना दिया था। इसके साथ ही निर्वाचन-आयोग ने ‘तहरीक़-ए-इंसाफ़’ मे हुए आन्तरिक चुनाव को भी अवैध घोषित कर दिया था, जिसके कारण उस पार्टी के सारे प्रत्याशी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप मे चुनाव-मैदान मे हैं। यही कारण है कि चुनाव की अधिसूचना घोषित किये जाने के बाद पी० टी० आइ० के सभी प्रत्याशियों को उनके अपने क्षेत्रों मे सेना-अधिकारियों-द्वारा प्रचार नहीं करने दिया जा रहा था। ऐसे अवैधानिक कृत्यों के कारण ऐसा लगने लगा है, मानो पी० एम० एल०– एन० के चुनाव जीतने का रास्ता साफ़ नज़र आने लगा है। इतना ही नहीं, पी० टी० आइ० मे इमरान ख़ान के स्थान पर वरिष्ठ नेता गौहर अली ख़ान को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था तथा उन्हें नवाज़ शरीफ़ के विरुद्ध चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशी घोषित कर दिया गया था; परन्तु पाकिस्तानी फ़ौज की शह पर वहाँ के प्रमुख निर्वाचन आयोग की पीठ ने ‘पी० टी० आइ०’ मे नियमो के अनुसार चुनाव नहीं हो रहे हैं, इस आरोप के आड़ मे अपने ग्यारह पृष्ठीय निर्णय मे गौहर का पद भी अमान्य घोषित कर दिया है, जबकि इस फ़ैसले को सुनाने से पहले निर्वाचन-आयोग की ओर से पी० टी० आइ० के शीर्ष नेतृत्व को यह आश्वासन दिया गया था कि उसे भी आगामी आम चुनाव मे दूसरी पार्टियों की तरह ही समान अवसर दिये जायेंगे, जबकि कथित आयोग की ओर से पीठ मे छुरा भोंका गया है।
पाकिस्तान के चुनावी गणित और राजनैतिक षड्यन्त्र को समझते हुए ऐसा लगने लगा है, मानो भारत की राजनैतिक स्थिति भी पाकिस्तान से मिलती-जुलती है; फ़र्क़ सिर्फ़ इतना दिखता है कि पाकिस्तान मे फ़ौजी आतंक है, जबकि भारत मे आये-दिन ई० डी०, सी० बी० आइ०, निर्वाचन-आयोग, आयकर-विभाग का सरकार-द्वारा मनमाना इस्तेमाल होता दिख रहा है। हमने हाल ही मे देखा है कि भारत मे आम चुनाव से पहले ई० डी०-अधिकारियों-द्वारा आम आदमी पार्टी के प्रमुख नेताओं, झारखण्ड के मुख्यमन्त्री हेमन्त सोरेन की गिरिफ़्तारी की गयी तथा निर्वाचन-आयोग-द्वारा शरद पवार की पार्टी का नाम और चुनाव-चिह्न को अवैध बताकर सत्ताधारी दल-समर्थित अजीत पवार को सौंपा गया।
हम यदि पाकिस्तानी चुनावी राजनीति के गणित के सवालात को हल करना शुरू करें तो ज्ञात होगा कि पाकिस्तानी फ़ौज इमरान ख़ान को फूटी आँख पसन्द नहीं करती। पाकिस्तानी फ़ौज की हर सम्भव कोशिश है कि इमरान ख़ान की पाकिस्तान की सत्ता मे वापसी न होने पाये। यही कारण है कि निर्वाचन-आयोग की ओर से जो निर्णय लिये गये थे, वे वहाँ के फ़ौजी अधिकारियों की सहमति और संकेत पर।
इमरान ख़ान के विरुद्ध १५० से अधिक गम्भीर प्रकरण दर्ज़ हैं। पाकिस्तानी फ़ौजी जानते हैं कि वर्ष २०१३ मे इमरान की पार्टी को २८ सीटों पर जीत मिली थी तथा वर्ष २०१८ मे ११६ सीटों पर। कल के चुनाव मे इमरान का पलड़ा भारी है; परन्तु जिस तरह से भारत मे राहुल गांधी शान्त और शराफ़त की ज़िन्दगी जीनेवाली जनता के सर्वप्रिय नेता बन चुके हैं, उसे देखकर सत्ताधारियों का सिंहासन डोलता दिख रहा है। यही कारण है कि सत्ताधारी नेता जिस तरह से कल-बल-छल के द्वारा चुनाव जीतते आ रहे हैं; चुनाव जीतने के लिए संवैधानिक संस्थाओं और सरकारी तन्त्र का दुरुपयोग करते आ रहे हैं, कुछ वैसा ही पाकिस्तान के सैन्यतन्त्र मे दिख रहा है। पता नहीं, पाकिस्तानी फ़ौजी हुकूमत को यह मालूम है कि नहीं– नवाज़ शरीफ़ पर लगाये गये गये ‘पनामा पेपर्स काण्ड’ (इमरान अहमद ख़ान नियाजी बनाम मुहम्मद नवाज़ शरीफ़) मे पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट की ओर से वर्ष २०१७ मे एक ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाया गया था, जिसने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ़ को सार्वजनिक पद सम्भालने से अयोग्य घोषित कर दिया था। इसके अलावा ‘अल-अजीजिया स्टील मिल भ्रष्टाचार’ आदिक कई घोटालों मे नवाज़ अपराधी सिद्ध होते रहे; सज़ा पाते रहे और रिहा होते रहे। इस तरह से एक सोची-समझी साज़िश के तहत उन्हें चौथी बार प्रधानमन्त्री बनाने के लिए रास्ता साफ़ करा लिया गया है; क्योंकि फ़ौजी हुकूमत उन्हें ‘कठपुतली सरकार’ के रूप मे अज़्मा चुकी है।
कुछ ऐसे तथ्य उभरकर आते हैं, जो बताते हैं कि पाकिस्तानी फ़ौज नवाज़ शरीफ़ को एक बार फिर से सत्ता मे लाना चाहती है। यही कारण है कि वह नवाज़ के रास्ते की सभी बाधाओं को दूर करने की कोशिश करती आ रही है।
नवाज़ शरीफ़ के विरुद्ध इमरान ख़ान की पार्टी पी० टी० आइ०-समर्थित महिला प्रत्याशी डॉ० यास्मीन रशीद को पाकिस्तान रेंजर्स-द्वारा इमरान ख़ान को गिरिफ़्तार किये जाने के बाद ९ मई, २०२३ ई० को भड़की हिंसा के दौरान थाने पर हमले की घटना मे यास्मीन को आतंकवादरोधी न्यायालय मे अभ्यारोपित कर दिया गया है। इतना ही नहीं, पंजाब-प्रान्त के अधिकारियों-द्वारा ८ फ़रवरी को होनेवाले आम चुनावों से पहले इमरान ख़ान की पार्टी के नेताओं और समर्थकों के ख़िलाफ़ काररवाई तेज़ कर दी गयी है। इसी के परिणामस्वरूप डॉ० यास्मीन रशीद के विरुद्ध की गयी काररवाई सामने आ चुकी है।
सच तो यह है कि वहाँ की जनता इमरान ख़ान और बेनज़ीर भुट्टो के बेटे बिलावल भुट्टो ज़रदारी के पक्ष मे हैं। इसे इमरान जानते हैं और बिलावल भी। बिलावल भुट्टो ‘पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी’ (पी० पी० पी०) के शीर्षस्थ युवा नेता के रूप मे चर्चित हैं। ऐसा समझा जा रहा है कि इमरान और बिलावल का आपसी आवश्यकता और आपसी समझ के आधार पर गठबन्धन हो चुका है, जो कि अदृश्य है। यदि ईमानदारी के साथ चुनाव कराये गये तो इमरान और बिलावल की पार्टियाँ सत्ता मे आ सकती हैं। ‘अवामी नेशनल पार्टी’, ‘मुत्ताहिदा कौमी मूवमेण्ट पाकिस्तान’ इत्यादिक दलों की भूमिका कारगर साबित हो सकती है।
अब देखना है, ऊँट किस करवट बैठ रहा है।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ७ फ़रवरी, २०२४ ईसवी।)
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