● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
आज (२१ अप्रैल) 'इण्डिया' (विपक्ष-गठबन्धन) ने सत्तापक्ष के विरुद्ध, जो अपना समवेत शक्ति-प्रदर्शन किया है, उसका नाम 'उलगुलान' रखा है। यह ऐसा नाम है, जिसकी अर्थ-सम्प्रेषणीयता जनसामान्य मे 'न' के बराबर है; क्योँकि उक्त आन्दोलन का नाम झारखण्ड की पृष्ठभूमि से उभरता है, जहाँ वहाँ के तत्कालीन शीर्षस्थ आदिवासी बहादुर सामाजिक नेता बिरसा मुण्डा ने वर्ष १८९९ से १९०० तक 'जल-ज़मीन-जंगल' को लेकर दक्षिणी राँची मे अपने ६,००० आदिवासी योद्धाओँ को धनुषबाण-भाला इत्यादिक हथियारोँ से सुसज्जित कराकर, अँगरेज़ोँ के विरुद्ध 'उलगुलान' नामक महाविद्रोह कर व्यापक पैमाने पर अँगरेज़ों को क्षति पहुँचायी थी।
'उलगुलान' आदिवासी-अंचल से निर्गत शब्द है, जिसका अर्थ है, 'व्यापक उथल-पुथल', 'महाविद्रोह', 'महाविप्लव', 'महाक्रान्ति' इत्यादिक।
आदिवासियोँ के 'भगवान्' के रूप मे मान्यता-प्राप्त बिरसा मुण्डा के नेतृत्व मे हज़ारोँ की संख्या मे आदिवासी योद्धाओँ ने अपनी पारम्परिक जल-जंगल-ज़मीन की रक्षा के लिए तत्कालीन सामन्तशाही, ज़मीन्दारी प्रथा तथा अँगरेज़ोँ की बर्बरता के विरुद्ध 'उलगुलान' नाम से जिस महाविद्रोह से तत्कालीन आततायियोँ के दाँत खट्टे कर दिये थे, उस आन्दोलन की पुन: आवश्यकता हो गयी है, ऐसा 'इण्डिया' अनुभव करने लगा है।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २१ अप्रैल, २०२४ ईसवी।)