गोवा मुक्ति आंदोलन के योद्धा मधु लिमये की 99वीं जयन्ती

(शाश्वत तिवारी)

मधुलिमये समाजवादी आंदोलन के अग्रणी पंक्ति के नेता रहे है। उन्होंने युवा उम्र में ही प्रथम विश्वयुद्ध का विरोध किया व जेल गये। फिर आजादी के आंदोलन में गिरफ्तार हुए व सजा काटी। फिर गोवा मुक्ति संग्राम में हिस्सेदारी की। गिरफ्तार हुए और पुर्तगाली पुलिस की लाठियों से गंभीर रूप से घायल हुए। फिर उन्होंने गोवा को पुर्तगालियों से आजाद कराया।

यह बात गांधी भवन, बाराबंकी में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, वरिष्ठ समाजवादी नेता, चिंतक, लेखक, बेजोड़ सांसद, गोवा मुक्ति आंदोलन के योद्धा स्व. मधुलिमये की 99वीं जयन्ती के अवसर पर समाजवादी चिन्तक राजनाथ शर्मा ने कही। इस अवसर पर श्री शर्मा ने मधुलिमये के चित्र पर माल्र्यापण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

शर्मा ने बताया कि आज से मधुलिमये जन्मशताब्दी वर्ष की शुरूआत हो गई है। इस शताब्दी वर्ष पर हर महीने एक वैचारिक संगोष्ठी आयोजित की जाएगी। उन्होंने बताया कि समाजवादी चिन्तक प्रोफेसर राजकुमार जैन (दिल्ली) और लोकतंत्र सेनानी जितेंद्र पाण्डेय सैलानी (कुशीनगर) को मधुलिमये स्मृति सम्मान देने का निर्णय किया गया है। कोरोना संकट में उन्हें यह सम्मान नहीं दिया जा सका। देश में स्थिति सामान्य होने के बाद सम्मानित किया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि यह सम्मान प्रत्येक माह किसी एक समाजवादी चिन्तक, विचारक, लेखक, राजनेता, श्रमिक नेता व समाजसेवी को दिया जाएगा।

शर्मा ने बताया कि मधुलिमये ने डॉक्टर राममनोहर लोहिया के साथ काम किया और उन्हीं को ही अपना नेता व अपना आदर्श माना। मधु जी एक नैतिक चरित्र के व्यक्ति थे। आपातकाल में वे गिरफ्तार हुए थे। उन्हें कुछ दिन रायपुर जेल में रहने के बाद नरसिंहगढ़ जेल भेज दिया गया था। तब उन्होंने मुझे 31 अगस्त 1976 को एक पत्र भेजा था। जिसमें तत्कालीन भारत सरकार द्वारा संसद की अवधि 5 वर्ष से आगे बढ़ाने के विरोध में उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दिया था। उन्होने अपनी पत्नी श्रीमती चंपा लिमये को संदेश दिया था कि, जिस दिन उनका कार्यकाल समाप्त हो रहा है, उसी दिन उनके दिल्ली के सांसद निवास से सामान निकाल कर उसे खाली कर दें। ये थी उनके सार्वजनिक जीवन की नैतिकता। अनेक बार सांसद रहे परंतु इतनी बेमिसाल ईमानदारी थी कि, उनके पास ना कोई गाड़ी थी, ना कोई दिल्ली में मकान था।