मेरे हुजूर!

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

बेशर्म निगाहों का भ्रम तोड़िए हुजूर!
झूठी आदतों को आप छोड़िए हुजूर!
मर रहा आँखों का पानी आपका हर बार,
बिखरा है देश अपना, उसे जोड़िए हुजूर!
सब्ज़बाग़ देखकर आँखें गयी हैं थक,
नज़रें ज़ुम्लेबाज़ी से अब मोड़िए हुजूर!
असर है सत्तर सालों का, जो आप दिख रहे,
भूलकर उपलब्धियाँ मत गोड़िए हुजूर!
माहौल घृणा, भय का, अब ख़त्म कीजिए,
अपने किये कर्मो को मत कोड़िए हुजूर!
सेवक-फ़क़ीर नाम न बदनाम कीजिए,
सरे आम अपना भाँडा न फोड़िए हुजूर!

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २९ नवम्बर, २०२२ ईसवी।)