जिस जे० एन० यू० मे गूँजता रहा है :– हमे चाहिए आज़ादी-ब्राह्मणो से आज़ादी, उसी ने अध्यक्ष के रूप मे ‘ब्राह्मणी’ को अपनाया!

जो जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जे० एन० यू०) ब्राह्मण-वर्ग का धुर-विरोधी रहा है, वहाँ छात्रसंघ के चुनाव मे ‘ब्राह्मण’ शीर्ष पर दिख रहा है; और वह भी वामपन्थियोँ के संघटन का प्रतिनिधित्व करते हुए। ऐसे मे, यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है, यह जे० एन० यू० की विचारशीलता मे किसी प्रकार का बदलाव है वा कोई स्वार्थपरक विषय?

बेशक, यह अन्तर्विरोध का चरम उत्कर्ष है। जब वाराणसी मे पली-बढ़ी ब्राह्मण-परिवार की लड़की अदिति मिश्रा ने वामपन्थी-संघटन के अध्यक्ष-पद की प्रत्याशी के रूप मे दक्षिणपन्थियोँ के सम्मुख ताल ठोँक रही थी तब सबको आश्चर्य हो रहा था, जोकि स्वाभाविक ही था; क्योँकि जहाँ कई दशक से ‘मनुवादी बनाम भीमवादी’ का वैचारिक संघर्षण रहा हो वहाँ वाराणसी की ब्राह्मणी को वामपन्थी संघटन स्वीकार कर ले, यह घोर विडम्बना का विषय है। जिन्हेँ ‘मनुवाद’ के ‘म’ तक की समझ नहीँ, वैसे बहुसंख्य विद्यार्थी ‘ब्राह्मण-वर्ग’ से घृणा करते आ रहे हैँ; क्योँकि वे अल्पज्ञ ‘मनुवादी’ का मतलब ‘ब्राह्मण’ समझते आ रहे हैँ, मानो वे स्वयं मे ‘दनुवादी’ होँ।

अदिति संकीर्णता से परे एक ठोस विचारशीलता को जीनेवाली छात्रा है। यह वही अदिति है, जिसने जे० एन० यू० की छात्राओँ पर रात्रि मे आठ बजे के बाद छात्रावास से बाहर निकलने की वर्जना, ‘कैम्पस’ मे छात्राओँ के लिए की जानेवाली सुरक्षा तथा लिंगभेद के विरुद्ध अपना अभियान प्रारम्भ किया था, जिसमे उसे सफलता मिली थी। अदिति ने अपने छात्रा-छात्रहित के लिए किये जानेवाले कार्य के बल पर, जो जे० एन० यू०-परिसर में ललकार भरी थी, उसका परिणाम बताता है कि जो भी नेतृत्व सच्चे मन से विद्यार्थियोँ के लिए आवाज़ उठायेगा, विद्यार्थी-समर्थन और मत उसी के साथ रहेगा।

उल्लेखनीय है कि “संघटन मे शक्ति है” का शानदार परिचय देते हुए, जे० एन० यू०-छात्रसंघ के चुनाव मे ए० आइ० एस० ए०, एस० एफ० आइ० और डी० एस० एफ० के गठबन्धन ने ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्’ को बुरी तरह से पराजित करते हुए, चारोँ पदोँ :– अध्यक्ष (अदिति मिश्र), उपाध्यक्ष (गोपिका बाबू), महासचिव (सुनील यादव) और संयुक्त सचिव (दानिश अली) पर अधिकार कर लिया है। इसप्रकार वहाँ तीन महिलाओँ की शानदार जीत हुई है और एक पुरुष की।

उल्लेखनीय है कि जहाँ ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्’ के उम्मीदवार चुनाव-प्रचार करते समय केवल राष्ट्रीय विषय उठाते रहे, वहीँ गठबन्धन-दल के प्रत्याशी कैम्पस-सुरक्षा, लिंग-विभेद तथा महिला-सुरक्षा को अपना मुद्दआ बनाते रहे।

जे० एन० यू० छात्रसंघ पर दक्षिणपन्थियोँ ने कुण्डली मारकर, अपना एकच्छत्र साम्राज्य स्थापित कर लिया था; वामपन्थियोँ की दाल तक नहीँ गल पाती थी। यही कारण है कि जे० एन० यू०-छात्रसंघ-चुनाव मे वामपन्थियोँ ने दूर दृष्टि का सुपरिचय प्रस्तुत करते हुए, अनेक संगठनो को जोड़कर, एक सुदृढ़ गठबन्धन बनाते हुए, इस बार दक्षिणपन्थियोँ को “चारोँ ख़ाने चित” कर दिया है।

यह विशेषत: द्रष्टव्य है कि अपने कार्योँ से विद्यार्थियोँ मे जानी जानेवाली अदिति मिश्रा को घोर ब्राह्मण-विरोधी वामपन्थी अपने अध्यक्षपद की प्रत्याशी चुनने के लिए बाध्य और विवश हुए थे। इससे सुस्पष्ट हो जाता है कि गर्हित-क्षुद्र-संकीर्ण स्वार्थ की पूर्ति के लिए बड़े-बड़ोँ का ‘सिद्धान्त’ धरा-का-धरा रह जाता है। हम इसे भारतीय राजनीति के मंच पर बहुविध देख सकते हैँ। बाला साहेब ठाकरे और उद्धव ठाकरे की राजनीति-शैली पर विचार करने पर ज्ञात होता है कि दोनो मे ‘धरती-आकाश’-जैसा अन्तर है।

अब देखना है, ‘मनुवादी बनाम भीमवादी’ की कुत्सित राजनीति करनेवाले अपने दृष्टिकोण मे सुधार करते हैँ वा फिर अपने पहलेवाले कलुषित चरित्र-चाल-चेहरा का बीभत्स रूप दिखाते हैँ। क्या ब्राह्मणी अदिति मिश्रा के नेतृत्व मे वामपन्थियोँ मे कोई बदलाव दिखेगा?

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