◆ हमारी ‘पाठशाला’ की किसी भी सामग्री को कोई भी व्यक्ति स्वतन्त्र और स्वच्छन्द होकर उपयोग करने का अधिकारी नहीँ है। यदि वह उपयोग करता है तो उसे सुस्पष्टत: उल्लेख करना होगा कि वह ‘किसके द्वारा’ मौलिक रूप मे लिखी गयी सामग्री का उपयोग कर रहा है।
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आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला
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‘संघटन’ और ‘संगठन’ को समझने से पूर्व हमे ‘घटन’ शब्द का बोध करना होगा।
तो आइए! ‘घटन’ शब्द को समझते हैँ।
◆ घटन– यह ‘घट्’ धातु का शब्द है, जिसका अर्थ ‘शब्द करना’ है। इस धातु के अन्त मे ‘ल्युट्’ प्रत्यय के जुड़ने से ‘घटन’ शब्द की उत्पत्ति होती है। घटित होने अर्थात् गढ़े वा बनाये जाने की क्रिया वा भाव का नाम ‘घटन’ है। इसी शब्द मे ‘सम्यक् रूप से’ ‘सम्’/’सं’ उपसर्ग का प्रयोग करके ‘संघटन’ शब्द की रचना होती है। बहुसंख्यजन अशुद्ध शब्द ‘संगठन’ को ही शुद्ध मानते आ रहे हैँ; क्योंकि ‘गठन’ के प्रचलन मे होने के कारण उनकी वैसी मान्यता है। आश्चर्य का विषय है कि वैसे ही लोग ‘विघटन’ का प्रयोग करते हैँ, जबकि उन्हेँ ‘संगठन’ के आधार पर ‘विगठन’ का प्रयोग करना चाहिए था। यहाँ जानने और धारण करने-योग्य यह विषय है कि शुद्ध शब्द ‘संघटन’ का विपरीतार्थक (विलोम) शब्द ‘विघटन’ ही होता है। इस दृष्टि से भी यह सिद्ध होता है कि शुद्ध शब्द ‘संघटन’ है, जिसका कि मूल शब्द ‘घटन’ है। हमारे बहुसंख्य विद्यार्थियों मे भ्रम की स्थिति शब्दकोशकारोँ के बोध मे अभाव के कारण ही है। जितने कोश हैँ, सबमे ‘संगठन’ दिया हुआ है; ‘संघटन’ भी है। वहाँ सम्बन्धित कोशकारोँ का व्याकरणिक ज्ञान अभावग्रस्त लक्षित होता है।
‘घटन’ के समानार्थी शब्द हैँ :– गढ़ा जाना, बनाया जाना, रचना किया जाना, सर्जन किया जाना इत्यादिक।
अब ‘गठन’ को समझेँगे।
◆ गठन– गठे हुए होने के भाव वा अवस्था का नाम ‘गठन’ है। यह ‘घटन’ का बिगड़ा हुआ रूप है।
इसके समानार्थी शब्द हैँ :– बनावट, रचना, सर्जन इत्यादिक।
वह अवस्था वा स्थिति, जिसमे किसी वस्तु के विभिन्न अंग किसी विशेष शैली मे बने हुए दिखायी पड़ते हैँ, ‘गठन’ कहलाती है।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय; २५ अप्रैल, २०२४ ईसवी।)