‘इण्डिया’ के सारे नेता मुखर क्योँ नहीँ?

‘इण्डिया’ के सारे नेता प्रथम श्रेणी के ‘चतुर-मूर्ख’ दिख रहे हैँ। उन्हेँ ‘मोदी ऐण्ड कम्पनी (प्रा० लि०) की दुर्बलता का भान रहता तो सब एक स्वर मे पूछ रहे होते :–
● चुनावी बाण्ड-घोटाले मे अपराधियोँ से चुनावी चन्दा के नाम पर रिश्वत लेकर उन्हेँ छोड़ा क्योँ गया?
● महिला-आरक्षण (एक सौ छ:वाँ संशोधन) अधिनियम २०२३ को अभी तक लागू क्योँ नहीँ किया गया है?
● वर्ष २०२३ तक सबको घर, बिजली-पानी देने के वादा का क्या हुआ?
● स्विस बैंक से कितना काला धन लाया गया?
● राम की प्राण-प्रतिष्ठा को विशुद्ध रूप से एक राजनैतिक आयोजन के रूप मे क्योँ किया गया? यदि नहीँ था तो ‘भारत की प्रथम नागरिक’ आदिवासी द्रौपदी मुर्मू की पूर्णत: उपेक्षा करते हुए नरेन्द्र मोदी को ही क्योँ प्राथमिकता दी गयी?
● नये संसद्-भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराया जाना चाहिए था; परन्तु राष्ट्रपति को बुलाया ही नहीँ गया था, क्योँ?
● आदिवासियोँ का चुनावी गुणगान करनेवाले नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को मन्दिरोँ मे जाने से रोके जाने पर एक शब्द तक नहीँ कहा, क्योँ?
● बंगाल के ‘संदेशखाली’ मे नरेन्द्र मोदी के मन मे महिलाओँ के प्रति सहानुभूति उपज आयी है, जबकि मणिपुर और उत्तरप्रदेश मे महिलाओँ की घोर दुर्दशा पर साँप सूँघ गया है, क्योँ?
● बी० जे० पी० का चुनावी घोषणापत्र स्वास्थ्य, महँगाई, बेरोज़गारी, शिक्षा, परीक्षा तथा रिक्त शासकीय सेवाओँ के विषय मे मौन क्योँ है?
● किसानो को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के विषय को बी० जे० पी० के चुनावी घोषणापत्र मे स्थान क्योँ नहीँ दिया गया है?
● मोदी ने यदि वास्तव मे, देश की जनता के हित मे काम किये होँ तो उन कामो को बताने से कतरा क्योँ रहे हैँ?
● मोदी की विफलता का मुख्य प्रमाण है कि वे जहाँ-जहाँ जाते हैँ, केवल काँग्रेस के ‘भूत’ को गले लगाते रँगे हाथोँ पकड़े जाते हैँ; यदि नहीँ तो अपनी उपलब्धि क्योँ नहीँ बताते?

इससे सिद्ध होता है कि ‘इण्डिया’ का ‘एन० डी० ए०’ को धारदार जवाब देने की तैयारी लड़खड़ाती दिख रही है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १९ अप्रैल, २०२४ ईसवी।)