अध्ययन और अभ्यास-द्वारा शुद्ध लेखन करना सीखें– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’

“हिन्दी हमारी मातृभाषा है, इसलिए हमारा अपनी भाषा के प्रति उत्कट अनुराग होना चाहिए। हमे अपनी माँ के प्रति जितनी श्रद्धा होती है उतनी ही अपनी भाषा के प्रति भी होनी चाहिए। हम अपनी हिन्दी-भाषा का समादर तभी कर पायेंगे, जब उसको शुद्धता के अलंकरण से सुसज्जित कर सकेंगे। अध्ययन और अभ्यास-द्वारा हमारे विद्यार्थी शुद्ध लेखन-वाचन करना सीख सकते हैं।”

ज़िला शिक्षा एवं प्रशिक्षण-केन्द्र (डाइट), मथुरा-द्वारा आयोजित की जा रही त्रिदिवसीय हिन्दीभाषा-शिक्षण-कर्मशाला के दूसरे दिन प्रयागराज से पधारे भाषाविज्ञानी और समालोचक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने संस्थान के मुक्तांगन में सैकड़ों प्रशिक्षणार्थियों को सम्बोधित करते हुए उपर्युक्त विचार व्यक्त किये थे।

उन्होंने देश-काल-परिस्थिति-पात्र के अनुसार किन शब्दों का कहाँ और क्यों प्रयोग किया जाता है, इन्हें विधिवत् समझाया। किस शब्द के अन्तर्गत किस वर्ण पर ‘रेफ’ का प्रयोग किया जाता है, उन्होंने इसे समझाने के लिए ‘अन्तर्जाल’, ‘अन्तर्ध्यान’ जैसे शब्दों को लिखकर अर्थसहित बताया। उन्होंने यह भी बताया कि किसी भी अर्द्ध-अक्षर पर कोई मात्रा नहीं लगती; क्योंकि ऐसे अक्षर लँगड़े होते हैं।

इस व्यावहारिक प्रशिक्षणशाला में कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग तथा पवर्ग के पंचमाक्षर पर अनुस्वार का प्रयोग नहीं होगा, इसे बताते और सिखाते हुए आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने मैं, मैंने, हमें , दोनों, तीनों, अपनों आदिक शब्दों में बिन्दी के प्रयोग को अशुद्ध और अनुपयुक्त बताया। उन्होंने ‘पूर्वग्रह’ और ‘पूर्वाग्रह’ को शुद्ध बताते हुए, दोनो के अर्थ को सोदाहरण सुस्पष्ट किया था। उन्होंने लगभग उन सौ शब्दों के और वाक्यों के शुद्ध प्रयोग प्रशिक्षणार्थियों को बताये थे, जो प्राय: सामान्य और प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं के लिखित और मौखिक परीक्षाओं के प्रश्नपत्रों में किये जाते हैं।

इस कर्मशाला की मुख्य विशेषता यह थी कि मुख्य अतिथि और मुख्य प्रशिक्षक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय हिन्दीभाषा के तद्भव, तत्सम, देशज, विदेशज शब्दों को समझाने के लिए प्रशिक्षाणार्थियों के पास पहुँचते थे और देखते थे, कौन क्या किस तरह से बताये जा रहे शब्दों को लिख रहा है। वे उनकी वर्तनी भी सुधारते थे। इतना ही नहीं, जो प्रशिक्षणार्थी प्रश्नों के उत्तर देने से बचने की कोशिश करते थे अथवा निष्क्रिय दिखते थे, उन्हें मंच पर रखे गये बोर्ड पर लिखवाते थे और सभी अशुद्ध-शुद्ध शब्दों में प्रयुक्त उपसर्ग, प्रत्यय, धातु, संधि, समास, कारक आदिक को समझाने की शैली में लिखते और बताते थे। यही कारण है कि वे पिछले दो दिनों से जिस तन्मयता और सुरुचिपूर्ण ढंग से प्रशिक्षणार्थियों को भाषा का ज्ञान करा रहे हैं, उसका प्रभाव यह है कि ठीक पूर्वाह्न १० बजे से अपराह्न ४ बजे तक सभी परीक्षणार्थी बिना धैर्य खोये बैठे रहते हैं और प्रश्न-प्रतिप्रश्न करते हैं। यूट्यूब के माध्यम से भी किये जा रहे प्रश्नों के उत्तर पाकर विद्यार्थियों के चेहरे पर संतुष्टि का भाव दिखता है; ऐसा इसलिए कि वे प्रत्येक प्रशिक्षणार्थी से जब तक कहला नहीं लेते– मैं संतुष्ट हूँ तब तक उसे समझाते रहते हैं।

डॉ० राजनाथ ने ‘हिन्दी-साहित्य का इतिहास’ पर अध्यापकीय प्रकाश डाला, जबकि डॉ० नीतू गोस्वामी ने रोचक ढंग से समास, अलंकार तथा रस को समझाया।

संस्थान के प्राचार्य एवं उपशिक्षा-निदेशक महेन्द्र कुमार सिंह ने इस शैक्षणिक आयोजन का प्रभावकारी संयोजन और संचालन किया।

इस सारस्वत आयोजन में अमित कुमार, रमेशकुमार, सत्यप्रकाश, नमित शर्मा, श्रद्धा गौतम, प्रीति, मधु, नैमिष शर्मा आदिक उपस्थित थे।