शिशु तुतलाकर पहली बार ‘मां’ बोलने को है,
चिड़ियां कलरव करने को हैं, कोयल गान सुनाने को है;
हिमनद पिघलकर मरुस्थल की ओर बढ़ने को है,
कुंआ खुद चलकर प्यासे के पास आने को है,
भूखे को छप्पन भोग बस मिलने को है,
जेठ की तपती गर्मी के पश्चात मेघ झूमकर बरसने को है,
मरणासन्न व्यक्ति को संजीवनी बूटी मिलने को है,
ठिठुरती ठंड में धूप खिलने को है,
चिपचिपी गर्मी में शीतल बयार बहने को है,
देवालयों के घंटे घड़ियाल बजने को हैं,
आरती की सुमधुर ध्वनि आने को है,
रामधुन बस बजने को है;
अंधियारा छंटने को है, सूर्योदय होने को है;
सनातन धर्म का उद्गोष , हिंदुत्व का जयघोष होने को है;
सदियों पुरानी प्रतीक्षा अब समाप्त होने को है,
विश्व भर के सनातनियों , रामभक्तों का हृदय खिलने को है,
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरण कमल अयोध्या धाम की पावन भूमि पर पड़ने को हैं,
हां, अब कुछ ही घड़ी शेष, सच में मेरे राम आने को हैं।
(आशा विनय सिंह बैस)