ऑनलाइन काव्यगोष्ठी का कलमकार दिवस के रूप में आयोजन सफलतापूर्वक हुआ संपन्न

लखनऊ सुप्रसिद्ध साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था “पहरू” के तत्वावधान में आनलाइन काव्यगोष्ठी का आयोजन कलमकार दिवस (ओज के सिद्धहस्त हस्ताक्षर वरिष्ठ कवि सिद्धेश्वर शुक्ल ‘क्रान्ति’ का जन्मदिवस) के रूप में हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुविख्यात वरिष्ठ साहित्यकार कुँवर कुसुमेश ने की। वरिष्ठ कवि गीतकार डॉ अजय ‘प्रसून’ मुख्य अतिथि तथा कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि सिद्धेश्वर शुक्ल ‘क्रान्ति’ थे। काव्यगोष्ठी का सफलतापूर्वक संचालन कवि व्यंग्यकार मनमोहन बाराकोटी ‘तमाचा लखनवी’ ने किया। वाणी वंदना सुप्रसिद्ध कवयित्री निशा सिंह ‘नवल’ ने अपने सुमधुर स्वरों में निम्नलिखित गीत से की।

ज्ञान की देवी मुझे माँ, ज्ञान के उपहार दो
भाव व्याकुल हो रहे माँ, शारदे संचार दो

इस सुन्दर वाणी वंदना के बाद सभी अतिथियों कवि कवयित्रियों ने एक एक करके वरिष्ठ कवि साहित्यकार सिद्धेश्वर शुक्ल ‘क्रान्ति’ जी को उनके जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं बधाई प्रेषित करते हुए उनके विषय में कहा कि वे एक सर्वहारा कवि हैं, जो विसंगतियों और अन्याय के खिलाफ अपनी लेखनी के माध्यम से देश व समाज का निरन्तर मार्ग प्रशस्त करते रहते हैं। सभी ने उनके सदा स्वस्थ सुखी एवं दीर्घायु होने की कामना की।

तत्पश्चात सुप्रसिद्ध गीतकार सतीश चन्द्र श्रीवास्तव ‘शजर’ ने अपने निम्नलिखित गीत से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया :-

जब दुनिया की बातों ने पीड़ा पहुंचाई है। राम चरित मानस ने मन की पीर भगाई है।

सुमधुर स्वर में कवयित्री अलका अस्थाना ‘अमृतमयी’ ने अपने निम्नलिखित गीतों से कार्यक्रम में चार चांद लगा दिया :-

सुरभित गीत शब्द की माला लेकर मै जो आयी हूँ।
जन्म दिवस पर आके मैं पीर ह्रदय की लायी हूँ।

कान्हा की बंशी चुराई ओ राधा क्यूँ इठलाई।
करूंगी आज लराई ओ राधा क्यूँ इठलाई।

इसके बाद हास्य कवि प्रवीण कुमार शुक्ला ‘गोबर गणेश’ ने अपनी निम्नलिखित रचना पढ़कर सबको खूब गुदगुदाया :-

जनसंख्या नियंत्रण करने के लिए, सारे उपाय करें भाई
फिर ते बाप बन गए भाई लोग दीनहिंन बधाई
अब बताओ हम यह मा का करी भाई।

वाणी वंदना कर चुकीं कवयित्री निशा सिंह ‘नवल’ ने बेहतरीन मुक्तक व गीत प्रस्तुत करते हुए ढेर सारी तालियां बटोरीं :-

बाज़ार में खुशी को इंसान ढूँढता है।
अपनो से मोड़कर मुँह पहचान ढूँढता है।
माँ बाप के चरण की रज धूल छोडकर
वो बेज़ान पत्थरों में भगवान ढूँढता है।

तत्पश्चात कार्यक्रम के संचालक मनमोहन बाराकोटी ‘तमाचा लखनवी’ ने अपने कुछ व्यंग्यात्मक मुक्तक एवं एक कुण्डलियां छंद प्रस्तुत कर कार्यक्रम को गति प्रदान की।

सुविख्यात कवि शायर आलोक रावत ‘आहत लखनवी’ के निम्नलिखित देशभक्ति से ओतप्रोत गीत पढ़कर ढेर सारी प्रशंसा एवं वाहवाही मिली :-

रंग मेरा केसरिया पावन ख़ून मेरा बलिदानी
मातृभूमि हित शीश कटाते सच्चे हिंदुस्तानी
जंगल में रह घास फूस का बना निवाला खाया
किंतु नहीं अकबर के आगे अपना शीश झुकाया
नोक पे जूते की रख ली थी राणा ने सुल्तानी
रंग मेरा केसरिया पावन ख़ून मेरा बलिदानी

इसके बाद ओज के सिद्धहस्त हस्ताक्षर वरिष्ठ कवि साहित्यकार सिद्धेश्वर शुक्ल ‘क्रान्ति’ ने अपनी बारी आने पर जन्मदिन ‌की शुभकामनाएं प्रेषित करने वाले सभी अतिथियों कवि कवयित्रियों का धन्यवाद किया तथा अपने निम्नलिखित के माध्यम से कार्यक्रम को नई दिशा प्रदान की :-

संक्रमण काल में आज हम जी रहे, बढ़ रही दिन बदिन जुल्म की त्रासदी।
डूबे बम काण्ड आतंक में हैं शहर, है उन्होंने चुनौती हमें आज दी।।
जो रहा खेल खेलता संहार के, काल बन उसी को निगल जाएगा।

साहित्य जगत की अमिट पहचान एवं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय प्रसून ने सुमधुर स्वर में काव्यपाठ करते हुए ढेर सारी प्रशंसा एवं तालियां बटोरीं :-

मरघटों में गया आदमी,
हो के लौटे नया आदमी।
नाचा नाचा फिरे हर कहीं,
हो गया बेहया आदमी।

कार्यक्रम के अध्यक्ष सुविख्यात कवि गज़लकार कुँवर कुसुमेश ने अपने आशीर्वचन के रूप में बेहतरीन दोहों गीत व ग़ज़ल से आज की काव्यगोष्ठी को ऊंचाइयां प्रदान कीं। उनके निम्नलिखित गीत को खूब प्रशंसा एवं वाहवाही मिली :-

क्यों चुप हो कुछ भी बोलो तो मन की आंखों को खोलो तो आज़ाद हिंद के रखवालों तुम अंतःकरण टटोलो तो

इसके अतिरिक्त अन्य कवियों में बेअदब लखनवी, केवल प्रसाद ‘सत्यम’ एवं कवयित्री रेनू द्विवेदी ने भी व्यक्तिगत रूप से दूरभाष पर क्रान्ति के जन्मदिवस पर अपनी शुभकामनाएं बधाईयां प्रेषित कीं, जो बार बार नेटवर्क समस्याओं के कारण समय से जुड़ पाने में असमर्थ रहे।

—-अवनीश मिश्रा