आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय का अभिमत

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

आप जिस भी क्षेत्र मे जायें, अपनी सत्यनिष्ठा और स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना को कभी विस्मृति न करें। आप अपनी जिजीविषा (जीने की इच्छा) और जिगीषा (जीतने की इच्छा) को कभी शिथिल न पड़ने दें; क्योंकि वही दोनो आपके जीवन के हेतु (प्रयोजन) हैं। आप कहीं भी रहें, आपका उत्कट प्रयास रहना चाहिए कि आप-ही-आप शीर्ष पर लक्षित होते रहें और अन्य के लिए ‘प्रेरणास्रोत’ (‘प्रेरणाश्रोत’, ‘प्रेरणास्तोत्र’ तथा ‘प्रेरणास्त्रोत’ अशुद्ध शब्द हैं।) बने रहें। आप केवल अपनी कर्म-रेखा को समृद्ध करते रहें और स्वयं से ‘स्वयं’ की तुलना करते हुए, ‘सर्वोत्तमावस्था’ के अधिकारी बने।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १४ जून, २०२२ ईसवी।)