जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद-
मातृभूमि की सेवा का प्रण,
तुम फ़िर से वीर निभा जाना।
देख रहा हिन्द निरीह दृष्टि हो,
तुम फिर से धरा में आ जाना।
नित बिद्ध हो रही भारत माँ,
तुम फिर कौशल दिखा जाना।
इन स्वार्थी, लोभी गिद्धों से,
भारत माँ को छुड़वा जाना।
‘आज़ाद’ अभी आज़ाद न माँ,
तुम फिर पिस्टल लहरा जाना।
गुण्डे समाजसेवी बने घूम रहे,
समाजसेवा का पाठ पढ़ा जाना।
नित विवश करेंगे फिर तुमको,
पर खुद के हाथों अब मत मरना।
हे! राष्ट्रवीर नित करूँ प्रार्थना,
मुझमें भी देशभाव जगा जाना।
मन मलिन हुआ जा रहा निरन्तर,
कुछ इसमें निर्मलता फैला जाना।
ये ‘जगन’ दे रहा है शब्दांजलि,
श्रद्धांजलि स्वरूप ही पा लेना।
स्वीकार करें यह आत्मनिवेदन,
फिर भारत माँ को महका जाना।