मज़दूराइन

ज़ैतून ज़िया

तो अगली बार
जब चुनना तुम उसे,
तो देखना ये
की चल पायेगी क्या?
वो मीलों दूर पैदल
वापस घर लौटने को,
उठा पायेगी क्या?
बोझ गृहस्थी का
सिर पर,
काट पायेगी क्या?
भूख कई दिन तक पेट की !!

जांच लेना तलवों की खाल
मोटी है की नहीं,
मुट्ठी की भींच
की मज़बूती भी मापना,
पेट में भूख की
गहराई में झांक लेना,
और जब सब नपा तुला लगे
तो संगिनी बना लेना !!

क्यूंकि जब आएगी
महामारी
या
आपदा
तो वो ही
टिक पायेगी साथ !!

———2———–

और जब तुम
अपने बनाये हुए रास्तों से निकलना
तो दिखाना उसे,
वो जगह
जहाँ तुम डामर पिघलाते थे,
दिखाना अपनी
अधकटी चार उँगलियों को
जो सामने वाली फैक्ट्री में दफ़न है,
और उस पेड़ को,
जिसके नीचे
रोटी खा,
गमछा बिछा, सोये थे तुम
उसके आने से पहले
उसके इंतेज़ार में !!

और देखना उस बहुमंज़िला
ईमारत को भी,
जहाँ ढोया है उसने मलबा
बाबा के साथ
जीजी के साथ,
जहाँ हर रोज़ ही
सिया है उसने,
नज़रो से तार तार हुए
आपने वज़ूद और कपड़ो को,
उन चूल्हे की काली ईंटो
को भी देखना,
जिसपे बनाती थी
वो और उसकी
माँ, मोटी-मोटी रोटियां,
वही रोटियां
जो रेल पटरियों पे पड़ी है !!

——-3———

जब भूख, प्यास लगे
या पाँव दुखे
तो बातें करना तुम
गाँव, खेत, नहर
और गोरु की,
याद कर गाँव को रो लेना
वो बहला देगी तुम्हें,
वादा करना उससे
अगली बार लाल किला
दिखाने का,
वो कोठरी बनवाने का
वादा लेगी तुमसे,
यूँ , कुछ मील
और गुज़र जायेंगे !!

देखते चलना
उसके पाँव के निशानों को
जो गहरे है
तुम्हारे पाँव से ज्यादा
क्यूंकि भार अधिक है
सर पर गृहस्ती का
और कोख में प्रेम का
इन्ही भारी पाँव के
निशानों के रास्ते
लौटेगा,
कोख से चिपका
नन्हा बच्चा
वापस,
विकास के काम पर
विकास के नाम पर !!