बुढ़ापा : एक मार्मिक अहसास

file pic.
प्रधान संपादक, इण्डियन वॉयस 24

राघवेन्द्र कुमार राघव-


अंगों में भरी शिथिलता

नज़र कमज़ोर हो गयी ।

देह को कसा झुर्रियों ने

बालों की स्याह गयी ।

ख़ून भी पानी बनकर

दूर तक बहने लगा ।

जीवन का यह छोर

आज अब डसने लगा ।

चलते चलते भूल गया

कितनी देर हो गयी ।

अंगों में भरी शिथिलता

नज़र कमज़ोर हो गयी ।।

जिनके लिए दिन रात

उम्र भर व्यय किए ।

आज उन्होंने ही देखो

कितने ज़ुल्मोसितम किए ।

कल तक मैं जीता था

जिन चेहरों को देखकर ।

आज वही चेहरे ही देखो

तनहा हमको छोड़ गए ।

किसी को अब हमारी

ज़रूरत कहाँ रह गयी ?

अंगों में भरी शिथिलता

नज़र कमज़ोर हो गयी ।।

उंगली थाम कर जिनको

यहाँ चलना सिखाया ।

ज़माने से सदा जिनको

बचाया और आगे बढ़ाया ।

जिनके अरमानों के खातिर

ख़ुद को जला दिया ।

भुलाकर आज हमको वह

ग़ैर के संग चल दिया ।

गुजरते वक़्त के माफ़िक

तारीख़ें धुंधली पड गयी ।

अंगों में भरी शिथिलता

नज़र कमज़ोर हो गयी ।।