एक अभिव्यक्ति

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

तुम्हारी पूर्णता
भाती नहीं मुझे
क्योंकि तुम मुझसे
द्रुत गति में दूर हो रहे हो।
हाँ, मैं अपूर्ण हूँ।
तुम मुग्ध हो, अपनी पूर्णता पर
और मैं गर्वित हूँ, अपनी अपूर्णता पर
क्योंकि आज मुझे
एहसास हो रहा है—-
कुछ रिक्तता बहुत ज़रूरी है
अस्तित्व की तलाश करने के लिए।
मैं डग भर चुका हूँ,
पाने के लिए :–
एक मधुर, बिनब्याही किन्तु गर्विता अपूर्णता की।
जो अनसुनी थी,
वही तो अपूर्वा अपूर्णता थी
और अनन्या अनिन्द्य अखण्डिता भी।