आदित्य त्रिपाठी-
फूल बनकर खिलो एक कमल की तरह।
कर दो शीतल सभी को विधु की तरह।
आरजू है हमारी मेरे भाइयों।
जब मिलो तो मिलो दोस्तों की तरह॥
था अभी पंक मे एक पंकज खिला।
पंक बोला कि इससे हमे क्या मिला?
बोला पंकज कि तुझमे मेरी जान है।
दोस्त! तुझसे ही मेरी ये पहचान है
नाम तेरा बढ़े इस गगन की तरह।
फूल बनकर खिलो एक कमल की तरह।
कर दो शीतल सभी को विधु की तरह॥
मित्रता नीर और क्षीर की देखिये।
करिये मिश्रित इन्हें और फिर तोलिए।
है बढ़ा नीर का क्षीर से मान है।
मित्रता पर इन्हें ख़ूब अभिमान है।
दो बदन हो गए एक जान की तरह।
फूल बनकर खिलो एक कमल की तरह।
कर दो शीतल सभी को विधु की तरह॥
बूँद जल की गिरी और सीप से जा मिली।
सीप की प्रीति मे बूँद मोती बनी।
विन्दु जल का जो था वह रतन बन गया।
काम ये मित्रता में अजब हो गया।
नाम इनका बढ़े इस गगन की तरह।
फूल बनकर खिलो एक कमल की तरह।
कर दो शीतल सभी को विधु की तरह॥
आरजू है हमारी मेरे भाइयों ।
जब मिलो तो मिलो दोस्तों की तरह॥