आज खुशी का पल,
प्रभु की प्राण प्रतिष्ठा का क्षण।
घर मंदिर है पांँच दीप जलाऊँ,
पुष्प से सजाऊँ, पीला अक्षत चढ़ाऊँ।
प्रभु का निमंत्रण पत्र आया
सज गई अयोध्या नगरी।
जिनके लिए सदियों से अखियांँ तरस गई,
बाईस जनवरी दो हजार चौबीस को स्वप्न हुए साकार।
साधु संतों के मनोरथ आज पूर्ण हुए,
जन प्रतिनिधि प्रभु राम के दर्शन होंगे।
जन हृदय में वास करने वाले,
प्रभु श्री राम के आशीष प्राप्त होंगे।
घर मंदिर है प्रभु का नित ध्यान करूंँ,
मर्यादा पुरुषोत्तम की कथा सुनाऊँ।
लोक रक्षक जन के अभिराम,
प्रभु के चरणों में शीश नवाऊँ।
जन के मनोरथ पूर्ण करनेवाले,
सिया के राम की जयकार लगाऊँ।
कण-कण में राम, जन-जन में राम,
जन्मों के पाप धुल जाए, मुझ पर प्रभु की कृपा हो जाए।
चेतना जीवन धन्य हो जाए, प्रभु की शरण में मुक्ति मिल जाए,
भक्त हनुमत के राम, भवसागर से सबका बेड़ा पार करेंगे।
जन-जन के राम, तुलसी, शबरी, केवट के राम,
प्रभु सियाराम के दर्शन होंगे।
सब मिलकर बोलो, समवेत स्वर में प्रभु का गान करो।
राम सियाराम, जय जय राम।
राम सियाराम, जय जय राम॥
चेतना प्रकाश चितेरी, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश।