![](http://www.indianvoice24.com/wp-content/uploads/2017/06/prithvinathji-150x150.jpg)
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
चित्र-विचित्र चेहरे हर तरफ़ से देखिए,
यक़ीं न हो जनाब तो फेसबुक देखिए।
कविता के नाम पर क्या-क्या परोसे हैं,
अर्थ-भाव सड़ रहे हैं फेसबुक देखिए।
उनकी शब्दावली पर नज़रें इनायत हों,
अर्थहीन टिप्पणियाँ फेसबुक देखिए।
बत्तीसी निकालतीं चहेते कुछ बुला रहीं,
लार टपकाते आ जाते फेसबुक देखिए।
शब्द सिकुड़ रहे शिल्प मूर्च्छा हैं खाये,
टाँग-पे-टाँगें पसरी हैं फेसबुक देखिए।
महारानी जी सोती नहीं, बीमार हैं रहतीं,
लपकझन्नू बनते डॉक्टर फेसबुक देखिए।
चैटिंग का सिलसिला रात-रातभर का है,
अरमानों को जगाती फेसबुक देखिए।
शब्दों में विधुर बनते कुछ ऐसे भी यहाँ
ग़ैरों की बीवी आज़्माते फेसबुक देखिए।
तीन-तीन बच्चों के बाप कुँआरे बन गये,
लार टपकते कुँआरियों पे फेसबुक देखिए।
कुछ महिलाएँ भी यहाँ चंट-चालू दिमाग़ की,
सोलह साल की दिखतीं फेसबुक देखिए।
छोड़ा एक, जोड़ा दो पर मन भी न भरा,
ख़्वाहिशें अजब-ग़ज़ब फेसबुक देखिए।
चेहरे की सुर्ख़ियाँ बूझ वे खूब हैं बुझे,
पैंतीस साला है जवान फेसबुक देखिए।
जवानी बुझ गयी पर अरमाँ ज़िन्दाबाद,
चाहत परवान चढ़ती फेसबुक देखिए।
सौन्दर्य-बोध है अथवा प्रवंचना का खेल,
‘प्रोफाइल’ में कैट्रीना फेसबुक देखिए।
हर किसी की भूख सब चाहें उन्हें ही,
दंद-फंद से भरा-पूरा फेसबुक देखिए।
‘इनबॉक्स’ में संवाद खुलकर हैं करते,
‘ऑउटबॉक्स’ बेज़बान फेसबुक देखिए।
कुछ सीखने-सिखाने की हैसियत कहाँ?
चित्रों से बजबजा रही फेसबुक देखिए।
अज्ञेय, मुक्तिबोध औ’ महादेवी भी यहाँ,
धोकर कविता रख दी फेसबुक देखिए।
चोरी के विचार और फेकूचन्द भी यहाँ,
बेशर्मी का है बाज़ार फेसबुक देखिए।
प्रवाह चिन्तन का सिकुड़ रहा है क्यों?
पर्द:फ़ाश कर रही है फेसबुक देखिए।
एक माध्यम है मिला पर समझें कितने?
वक़्त यों ही गुज़ार देते फेसबुक देखिए।
”तू मेरा मैं तेरा” धुन राष्ट्रीय-सी लगती,
एक-दूसरे की बजाते फेसबुक देखिए |
(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय; ७ अक्तूबर, २०१८ ईसवी)