मंज़िल 

सुधेश

डॉ. सुधेश (से. नि. हिन्दी प्राध्यापक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय )


जीवन भर दौड़ते दौड़ते
न मिली मंज़िल
अब लँगड़ाते हुए
क्या मिलेगी

फिर भी लँगड़ाना तो है ही
मंज़िल की तरफ़
आख़िरी साँस तक ।