जगन्नाथ शुक्ल…✍ (इलाहाबाद)
ऋषि भरद्वाज के यज्ञ की आग हूँ।
मैं युगों-युगों से तीर्थराज प्रयाग हूँ।।
सूर्य-चन्द्र की ज्योति तक आबाद हूँ,
मैं ही अकबर का अल्लाहाबाद हूँ।
चन्द्रशेखर आज़ाद के हृदय का ताप हूँ,
मैं ही वेणीमाधव का पुण्य प्रताप हूँ।
मैं अक्षयवट की हरीतिमा का पर्याय हूँ,
मैं ही गङ्गा की अविरल धारा का राग हूँ।
मैं युगों- युगों से तीर्थराज प्रयाग हूँ।।
पत्थर गिरिजाघर के कैंडिल की ज्योति हूँ,
मैं पन्त- निराला के भावों की अनुभूति हूँ।
मैं ही महादेवी के शब्दों की गरिमा हूँ;
मैं ही तो इस धराधाम की महिमा हूँ।
मैं ही सेण्ट्रल लाइब्रेरी की चहल-पहल हूँ;
मैं गङ्गा-जमुनी तहज़ीब का अनुराग हूँ।
मैं युगों-युगों से तीर्थराज प्रयाग हूँ।
मैं ही अकबर इलाहाबादी की शाइरी हूँ;
भरी-पूरी स्वतंत्रता आंदोलन की डायरी हूँ।
मैं ही खुशरूबाग़ के अमरुद की मिठास हूँ;
मैं ही ध्यानचन्द में बसी हॉकी की साँस हूँ।
इण्डियन कॉफी हॉउस का चिन्तन शिविर हूँ;
मैं वासन्ती फुहार में फ़ागुन का फ़ाग हूँ।
मैं युगों – युगों से तीर्थराज प्रयाग हूँ।।
मैं प्रेम में अलसाई लोकनाथ की जलेबी हूँ;
मैं ही शक्तिपीठ अलोपशंकरी देवी हूँ।
पाण्डुलिपियों से सुरभित भारती-भवन हूँ;
मैं ही यज्ञ की वेदी का हवन हूँ।
मैं ही हाईकोर्ट और नैनी का कारागार हूँ;
मैं ही हर्षवर्द्धन का दान और त्याग हूँ।
मैं युगों – युगों से तीर्थराज प्रयाग हूँ।।