रंगीनिए हयात की पहचान है कोठा

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

बज़्मे नशात१ की यह शान है कोठा,
दौलत औ’ हुस्न का ईमान है कोठा।
यों ही नहीं बनती रक़्क़ास२ जान लीजिए,
लाचारी औ’ मज़्बूरी का नाम है कोठा।
तवाइफ़ का जिस्म है रंगीनिये-शबाब,
रंगीनिए हयात३ की पहचान है कोठा।
रंगीनिए तबस्सुम४ का असर तो देखिए,
रंगीनिए निगाह पे क़ुर्बान है कोठा।
रंगीमिज़ाजी का अब आलम५ न पूछिए,
रंगीनिए बहार की मुसकान है कोठा।
रंगीनिए माहौल से मुँह न छिपाइए,
रंगीनिए तहज़ीब६ का इन्आम७ है कोठा।
रंगीनिए तकल्लुम८ हर सू चर्चा मे है,
रंगीनिए जमाल९ का उन्वान१० है कोठा।
रंगीनिए तख़ातुब११ बेनज़ीर१२ है उसका,
रंगीनिए हया१३ का बयान है कोठा।
रंगीनिए तरन्नुम१४ हर महफ़िल लूटता,
रंगीनिए एज़ाज़१५ का दीवान१६ है कोठा।
रंगी लिबास हुस्न का न है कोई जवाब,

रंगीनिये-अदा से ही बदनाम है कोठा।

शब्दार्थ :―
१रागरंग वा आमोद-प्रमोद का उत्सव २नर्तकी ३जीवन ४मृदु हास ५दशा ६शिष्टता ७पुरस्कार (‘इनाम’ और ‘ईनाम’ अशुद्ध हैं।) ८वार्त्तालाप ९सौन्दर्य १०शैली ११सम्बोधन १२अप्रतिम १३लज्जा १४स्वर-माधुर्य १५प्रतिष्ठा १६ग़ज़ल-संग्रह।

(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ३१ जुलाई, २०२३ ईसवी।)