सदा वचन की धनी रहे

जगन्नाथ शुक्ल (इलाहाबाद)

कविते! तेरे तरकश में,

मेरी भी वाणी बनी रहे।
उदात्त भाव से नित मेरी,
मधुर  रागिनी  ठनी रहे।
कर्कश न हो शब्द कभी,
नित प्रेमभाव से सनी रहे।
रिश्तों की हो नित गरिमा,
सदा वचन की धनी रहे।
निन्दित न हों भाव मेरे,
स्नेह की चादर तनी रहे।