● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
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एक–
राम सिया-बिन किस लिए, प्रश्न उछलता रोज़।
मुँह-दरवाज़े बन्द हैं, कौन करेगा खोज?
दो–
मन्दिर दिखे अपूर्ण है, प्राण-प्रतिष्ठा-प्रश्न।
मूल समस्या गर्त मे, मना रहे सब जश्न।।
तीन–
राजनीति की गोद मे, खेल रहे हैं राम।
उल्लू बोले रातभर, लक्षण दिखता वाम।।
चार–
पाप घड़ा का भर रहा, दिखते मति से हीन।
राम रमैया रम रहा, लोग बजायें बीन।।
पाँच–
अहंकार आकाश मे, मूल प्रश्न पर मौन।
बिल्ली घण्टी बाँधने, पहल करेगा कौन?
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १८ जनवरी, २०२४ ईसवी।)