सूरज की किरणें

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद, मो०- ९६७००१००१७

अरुणोदय हो गया शिखर में,

किरणों से सुरभित हो गई धरा।

पशु-पक्षी भी हो गए प्रफुल्लित,
धरती का दामन है हरा – भरा।
कलियां पुष्पित होकर मुसकाईं,
चञ्चरीक ने किया है गुँजन गान।
पक्षी दल ने पंक्तिबद्ध हो करके,
नभ में पंख पसार किए सम्मान।
नर गण धरती पर मज्जन करके,
जल से अर्घ्य देकर किए प्रणाम।
रवि हैं ऊर्जा के अक्षुण्ण भण्डार,
प्रकट होता नित उदयाचल धाम।
मार्तण्ड चमकता देखकर बालमन,
विद्यालय की सोच डरने लगता है।
दूब से चिपका ओस बिन्दु सुबह,
मयूख ताप से गलने लगता है।
सप्तअश्व के रथ पर सवार होकर,
सविता ताण्डव करने लगता है।
ऊष्मा से व्याकुल मानव जन की,
स्वेदग्रंथियाँ नीर उगलने लगती हैं।
ढ़लते सूरज को देख देख कर ,
चिड़ियाँ घोसला ढूँढने लगती हैं।
धीरे -२ अस्ताचल को जाता सूरज,
अपनी किरणें समेटने लगता है।
फिर किसी दूसरे द्वीप में जाकर,
पूरी ताकत से तपने लगता है।