तेरी इन झील सी आंखों में जो ये नूर दिखता है

पवन कश्यप (युवा गीतकार, हरदोई)

तेरी इन झील सी आंखों में जो ये नूर दिखता है,

तेरे चेहरे की मदहोशी में ये मन चूर दिखता है ।

कहीं जुल्फों का गिर जाना, कहीं अधरों का खिल जाना ।

कहीं मासूम चेहरे पर, जरा मुस्कान आ जाना ।

तुम्हें यूं देखकर चंदा भी अब मजबूर दिखता है ।

तेरी इन झील सी आंखों में जो ये नूर दिखता है,

तेरे चेहरे की मदहोशी में ये मन चूर दिखता है ।

बन्द कर लूं जो ये आंखें,  तेरी तस्वीर आती है।

तेरा झुमका तेरा काजल तेरी बिन्दिया सताती है ।

है तेरे दिल में क्या आंखों में सब दस्तूर दिखता है ।

तेरी इन झील सी आंखों में जो ये नूर दिखता है,

तेरे चेहरे की मदहोशी में ये मन चूर दिखता है ।

जिन हाथों में रची मेंहदी, उन्हें चेहरे पे मत लाओ ।

हटा दो शर्म का परदा, जरा मुखड़ा तो दिखलाओ ।

छिपाओं चाहें जितना तुम प्यार भरपूर दिखता है ।

तेरी इन झील सी आंखों में जो ये नूर दिखता है,

तेरे चेहरे की मदहोशी में ये मन चूर दिखता है ।