कविता : पिता

कवि राजेश पुरोहित, भवानीमंडी


घर का रखवाला होता है पिता
चिन्ता रख घर परिवार चलाता
मजदूरी कर लाता पेट भरने को
भूखे रहकर निवाला खिलाता है
सर्दी गर्मी बारिश सहता है पिता
फिर भी कितना खुश रहता पिता
खुद फटे कपड़े सिलकर पहनता
मगर बच्चों के नए वस्त्र लाता है
एक पिता ही है जो धन जोड़कर
बच्चों को पढ़ाकर हुनरमंद बनाता
अपने पैरों पर खड़ा कर देता है
खुद कितना भी दुख देख लेता है
मगर फिर भी खुश ही रहता पिता
थोड़ा सा अनुशासन रखने को वह
कभी कभी अकेले भी रह लेता है
थोड़ा फासला रखना सिखाता है
मर्यादा का पाठ पढ़ाता है पिता
जीवन जीने की कला सिखाता है।