वर्णभेद

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद


वर्ण भेद का रोना रोने वालों,

नित निज दृग नीर दिखने वालों।
भूल गए उन पिछले दिन को,
निज सम का हक़ खाने वालों ।
माना कुछ दिन थे दुर्दिन के,
क्या त्रुटि थी जो अब हैं उनके ।
ग़रीबी वर्ण न रूप निहारे,
सब हैं दाता के ही तो सहारे।
क्या सवर्ण सब राजा होते ,
निर्धन सवर्ण क्या प्रजा न होते।
क्या उनके न तन औ पेट है,
क्या सबकी ही भरी टेंट है।
कुछ तो तुम मानवता दिखलाओ,
लोकतन्त्र की समता बतलाओ।
जिसको मिला आरक्षण इक बार,
उनको ही क्यों मिलता हर बार ।
आरक्षण का है  रूप निराला ,
जिसे मिला मुँह पर है ताला।
उसी का दूजा भाई है बेहाल ,
पर उसे आरक्षण चाहिए हरहाल।
अच्छी भली है सोच तुम्हारी,
गाना कम और ज्यादा बजाने वालों।
वर्ण भेद का………………………
जिसको मिल चुका लाभ है इसका,
कितना बढ़ चुका चाभ है उसका।
लाभ जिसे मिल चुका विधाता,
अब दूजे को यह देते दाता ।
इससे होगा आरक्षण उद्देश्य तो पूरा,
वरना सदा रहे यह आधा-अधूरा।
जब एक नागरिक एक देश है,
जब गरीबी आती न देखे वेश है।
न रंग पर किसी का चलता जोर है,
इसकी मार पर उठता समान शोर है।
केवल यह विनती है ‘जगन’ की,
जिसका पतन है उसके उत्थान की।
गरीबी को तुम देखो प्रभु जी,
सबका के ही जीवन को बचाओ।
सबके मन के मर्म को समझो,
उनके जीवन स्तर को उठाओ।
सत्य को समझ कर कदम बढ़ाओ,
नित वोटनीति के तीर चलाने वालों।।